Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी में
रुप्पमयाणकलसाणं, रुप्पमणिमयाणकलसाणं, सुवण्णरुप्पमणिमयाणकलसाणं; मोमेजाणं, सब्बोदएहि, सब्वमट्टियाहिं, सबपुप्फेहि, सव्वगंधेहिं; सव्वमल्लेहिं, सब्बोसहि सिद्धत्थएहिय सवढीए सब्विर्जुईए,सबबलणं,जाव दुंदभिणिग्घोसणाइ रवेणं महाया २
रायाभिषेएणं अभिसिंचंती, करयल 'जाव कटु एवं वयासी-जयजयणंदा • जयजयभद्दा भदंते . अजियंजिणाहि जियपालयाहि जियमझेवसाहि, अजिर्य
जिणेहि सतुपखं, जियंचपालहिं मित्तपक्खं, जाव भरहोइवमणुषाणं रायएक सो आठ चांदी, मणि के कलश, एक मो आठ मुवर्ण चांदी व मणि के कलश और एक सो आठ मृत्तिकाके कलश से संपूर्ण पानी, संपूर्ण मृत्तिका, पुष्प, गंध, माला, औषधियों सिद्धार्थ मांगलिक निमित्त सब वस्तुओं सहित सब प्रकार के आभरणों सहित, सब प्रकार की युति, क्रांति सहित, सब प्रकार की चतुसंगिनी सेना सहित यावत् दुंदुभी आदि वादित्र के बडे २ शब्दों से निर्घोषणा करते हुये बडा सज्याभिषेक कीयापीछे दोनों हाथ जोडकर ऐमा बोले-अहो मेघराजा! तुम जयवन्त होवो. विजयवन्त होवो, आनंद समृद्धि को प्राप्त होवो, तुम्हारा कल्याण होवो, नहीं जीते को जीतो, जीते. की प्रतिपालना करो. जयवंत सज्जनो के मध्य में निवास करो, अजित शत्रुको जीतो, जीने हवे शत्रका भी पालन करो,मित्र पक्ष
प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदव सहाय जी ज्वालाप्रसादजी
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