Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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षष्ट ड्रज्ञानार्धमकथा का प्रथम श्रुतस्कंध
सध्व पाणाइयायं पञ्चक्खामि जाब मिच्छादसण सल्ले पच्चक्खामि, सव्वं असण। पाण खाइम साइमं चाव्वहंपि आहारं पच्चक्खामि जाव जीवाए, जंपिय इमे सरीरं इ8 कंतं पियं जाब विधिहारोगायका परिसहोवसग्गा कुमात तिकडु एवं वियण चरिमेहिं ऊसासणीसामेहिं वोसरामि तिकटु, सलहणा झूसिए भत्त पाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ॥ १८३ ॥ तएणं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अण मारस्स अगिलाण वेयावडियं करति ॥ १८ ॥
तएणं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अतिए में उन की ही पास सब प्र णातिपात यावत् मिथ्या दर्शन शल्य का जावजीव प्रत्याख्यान करता है प्रशनदि 4 चारो आहारका प्रत्याख्यान करता हूं और यह मेरा शरीर इष्ठ. कांतकारी पिय है उसको पावत विविध
प्रकार के रोग व परिपरा उपसर्ग स्पर्शो, यह अब चमि उच्छा विश्वास पर्यंत त्यागता. . स खासे ।। 4 आत्मा निकल करनेवाला भक्तान का सामान किया पादोगमत संथारा .
अंगीकार किया और काल की बाँच्छा नहीं करता हुग विचरने लगा. ॥ १८३ ॥ वहां रहे हुने स्थविर . भगवंत मेघ अनगार की अग्लानपन वैय्यावृत्य करने लगे. ॥१८॥ श्रमण मगान महावीर के स्थाप।
निवासमेषकुमार का प्रथम मध्यपन 47
मर्थ
ANANA
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