Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
Manormanandimammammadar
48+ षष्टान ज्ञातार्धमकथा का प्रथम श्रुतस्कंध
अण्णया कयाइं. कमेणं पंचसु ऊऊसु समक्तेसु गिम्हकाल समयांस जेदामले मासे पायवसंघससमुट्ठिएणं जाव संवाड्ढएस मिय-पसु-पक्खि-सिरीसवेस दिसोदिस विपलायमाणेसु तेहिं बहुहिं हत्थीहियसाई जेणेव मंडले तेणेव पहारेत्थगमणाए तत्थणं अण्णे बहवे सीहाय, वग्याय, विगाय, दीरिया, अच्छा,रीच्छ तरच्छाय, पारासरा सरभाय, सिआल, विराला, सुणहा, कोला, ससा, कोकंतिय, चित्ता, चिल्लला
पुवपविट्ठिया, अग्गि मया भिवा एगओविलधम्मेणं चिट्ठति ॥ १५९ ॥ तएणं प्रावृट् काल, वर्षाकाल, शरत्काल, हेमंत काल व वसंत काल यो पांचों कास अनुक्रम से व्यतीत हुए पीछे ग्रीष्म काल में ज्येष्टमामा आया. इस में वांशादि पादप में परस्पर संघर्षण होने से दावामि उत्पन्न हवा, यावत् वृद्धिपाने लगा. मृग, पशु, पक्षी, सर्प, इत्यादि चारों दिशि में भगने पर तू ने हाथियों व हा णियों के परिवार सहित अपने पंडल पर आया. ॥१५८॥ उस मंडल में अन्य बहुत सिख, व्याघ १६ चित्ते, अच्छ, रीछ, तरच्छा, पारासर, झरभ, गाल, सूर, कुचे, कोले, शशले, कोकोतका, या है इसादि व जीवों ने पूर्वोक्त मंडल में प्रवेश किया और जैसे चींटी आदिशक बिल में रहते हैं से कहा
--... मेने लगे. ॥ १५९ ॥ तत्पश्चात् अहो घ मौरि
- उत्तप्त (मघकुपार ) का प्रमाण
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