Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पटानागावरकथा काथ। श्रुतध 3:
तुम उउय कुसुमकयचामराकण्णपूरपरिमीडयाभिरामे मयवसविकसंत कडतड किलिण्ण गंधमदवारिणा सरभि जणियगंधोकरेण परिवारिओ उऊ समत्त जणिय सोहोकाले दिणयरकरपयंडे परिससिय तरुवर सीहरमीमतर दरिसाणजे, भिंगाररूवंतरवभेरवरवे गाणाविह पत्त-कट्र-तण- कयवरुद्धत पइमारुया इट्ठणहयल दुमगणे वाउलि दारुणतर तण्हावसदोस इसिय समंत विविह सावयसमाउले भीम
दरिसणिज्जे, वदंते दारुणमिगिम्हे मारूय यमपलर पसरिय वियंभिएणं अभहिय मद का पानी भरने से तेरे में मनोहर गंध उत्पन्न हुइ, हायोंगयी का परिवार से परवरा हुचा रहा. जिस काल में समस्त ऋतुन शोभा उत्पन की है, जिस में सूर्य का प्रचंड ताप है, जिप्त में प्रधान वृक्षों के शिखरों निरस करने से रौद्र दीखते हैं, जिसमें भ्रमराओं भयंकर रौद्र शब्दों करते जिन में प्रतिकूल वायु से विविध प्रकार के पत्र, काष्ट, तृण, कचवर । नमस्ल व वृक्षगण को व्याप्त कर दिया है, जिस में भयंकर वायू (बंटोलियों आंधि प्रमुख होता है, जिन में तृषा से पीडित सापद पशुओं इधर उधर पानी की शोध में परिभ्रमण करते हैं, इस से वह काल बहुत हो भयंकर देखाव वाला होता है. ऐसा दासण ग्रीष्मकाल में बाय के वशा से प्रसरा हुवा दावानल प्रबड़ी भूत हुवा. वह वनदव कैसा है सो बताते हैं-ज्यों २ वन दावाग्नि अधिक होता है त्यों २
489 गत्क्षप्त प्रघकुमार का प्रथ! अध्ययन
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