Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
एवं चरिम वरसारसिः महावुट्रिकायंसि सणिवायमाणंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छइ २ ता तच्चपि मंडलघायं करेंति जं तत्य तणंवा जाव सुहं मुहेणं विहरइ॥१५६॥ अह मेहा! तुमं गयंदभामि वढमाणो कमेण णलाणवण विधवणकरे हेमंते कुंदलोडउद्दततुसारपउरांमि अइकते अहणबगिम्ह
काल समयसि पत्ते वियदृमाणो वणे सुबणकरेणु विविहदिण्णकयंपसघाओ पुनः आया और दूसरी वार तैने वह मंडल वृक्षादि नीकाल कर स्वच्छ किया और चरिम वर्षा काल में जब बहुत वृष्टि हुई तव पुनः अपने मंडल में आया और वहां जो तृणादि रहे थे उसे नीकाल कर तीसरी वार मंडल स्वच्छ बनाया. और फीर तू मुख पूर्वक विचरने लगा ॥ १५६ ॥ अब अहो मेघ ! गजेन्द्र भाव में प्रवर्तता हुवा नलिनीवन को विध्वंस करने वाला ६ कुंद पुष्प क्लोप्र वृक्ष को समुद्धिवान करने वाला व अतिहिम पड़े वैसा हेमंत काल अनुक्रम से व्यतीत हुवे पीछे आया हवा ग्रीष्म काल में विचरता हुवा बन में हाथियों की साथ तू जल क्रडा करने लगा. अहो मेध ! ऋतु से उत्पन्न हुए पुष्ा रूप चवर समान कर्णपुर से शोभायमान व मनोहर तू था. मदन दश से खिन्नरखते हुवे गंडस्थलों में से गंधरूप
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी वालाप्रसाद
१ कजा पानी उससे उत्पन्न. सो पुष्प यहां जलक्रीडा.
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