Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
+ पष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
भगवं वदं णसंसद् २ ता एवं वयासी इच्छामिणं भंते ! तुम्भेहिं अन्भणुन ए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ? अहासुहं देवशणुपिया ! मापडबंध करेह || १७४ ॥ तणं सेमेह समणेणं भगवया महाबीरेणं अध्भणुष्णाए समाणे मासिय भिक्खुपडिमं उवसंपजित्ताणं विहर। मासियं भिक्खुपडिमं अहासुतं अहाकप्पं, अहामग्गं सम्मं कारण फासेइ, पालेइ, सोहेइ, तीरेइ, कोइ सम्म कारण फासित्ता पालित्ता सोभित्ता तीरिता किट्टित्ता पुणरवि समणं भमवं महावीरं वंदइ
महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर मेघ अणगार ऐसा बोले अहो भगवन् ! आप की आज्ञा होवे तो एक माम की भिक्षूकी प्रतिमा अंगीकार करना चाहता हूं, भगवान ने उत्तर दिया अहो देवानुमिया ! जैसा तुमको सुख होवे वैसा करो विलम्ब मत करो || १७४ ॥ महावीर स्वामी की अनुज्ञा होने मे अनगार एक मास की मिक्षूकी पाडमा अंगीकार कर विचर ने लगे जिस में एक महिनेतक एक दात अहार की एक दात पानी की ग्रहण कर जो २ उपसर्ग आये सो सब सड़न किये, शास्त्र में जंसा कहा ? वैसे ही पडिमा अंगीकार कर जिस का जेसा मार्ग है जैसे सम्यक् प्रकार से काया से स्पर्शी, पाला शुद्धकी, { पूर्व की कीर्ति की इस तरह सम्यक् प्रकार से काया से स्पर्शकर यावत् कति कर पुनः दूसरी वक्त श्रमण
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उत्क्षिप्त (मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन
१.४१
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