Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 48
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सेणियस्सरण्णो कोडेबियपुरिसेहिं सहावित्ता समाणा हट्ठ तुट्ठा व्हाया जाव एगासरण गहियणिज्जोया, जेणामेव सेणिएराया तेणामेव उरागच्छइ २ सेणियरायं एवं वयासी संदिसहणं देवाणुप्पिया ! जणं अम्हेहिं करणिजं ?॥ १२२ ॥ तएणं से सेणिए तं कोडुंबियवरतरुणसहस्सं एवं वयासी-गच्छहणं देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमारस्त पुरिस सहस्स वाहिणी सीयं परिवहह ॥ तएणं ते कोडंविय वरतरुण सहस्सं सेणिएणं रण्णा एवं वुत्तं मंतं हटुं तुटुं मेहस्सकुमारस्स पुरिससहरस वाहणिसीयं परिवहइ ॥१२३॥ तएणं तस्स मेहरम कुमारस्स पुरिससहस्सवाहणीं सीयं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठ मंगलया तपढमयाए पुरओ आहाणुपुवीए संपाट्टिए, तंजहा-सोच्छियं,सिरिवच्छ, गंदामार श्रेष्ठ तरुण कौरम्बिक पुरुषों हृष्ट तुष्ट हुए स्लान कीया यावत् एक समान आभरण पहिन कर अपने गृह से नीकल कर श्रेणिक राना की पास आये और उन से बोले-अहो देवानुप्रिय ! कहो क्या करें ? ॥ १२२ ॥ श्रेणिक राजाने कौटुम्बिक पुरुषों को ऐसा कहा-अहो देवानुप्रिय ! मेघकुमार हजार पुरुष वाहिनी पालखी उठावो. श्रेणिक राजा से ऐशी भाज्ञा होते उक्त हजारों कौटुम्बिक पुरुषोंने ईमेघगर की पालखी उठाइ. ॥ १२३ ॥ जब मेघकुपार पालखीपर आरूढ हुए तव अनुक्रम से आठ मंगलिक आगे नीकाले जिनके नाम-१ माधिया,२ श्रीवत्स, ३ नंदावर्त, ४ वर्धमान, ५ भद्रासन, ६ कलश,
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प्रकाशक-राजाबहादुर काला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी
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