Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मागमाता पर्वका का तक +8+
जेणानेव अहं सेणेव हम्बमागए, सेणूणं महा ! एसअटे सम? हंता अढे समष्टे 4 ॥ १३॥ एवं कलु महा ! तुम इउतचे अइयभवग्गहणे वेयगिरि पायमूले वणयरेहि जिन्वतिय जामधेजे संखदल उजल विमल णिम्मल दहियण गोखीर फेण वररयरयय रियप्पयासे सत्तुसेहे णवायए इस परिणाहे सत्तंगपइदिए सोमं संमिए सुरुवे पुरओ उदग्गे समुसियसिरे सुहासणे पिटुआबरहि अइकुक्खया अच्छिहकुक्खी
भलंबकुक्खी पलंबलंबोदराहरकरे धनुप्पिटुगिइ विसिटुपट्टे अल्लीणपमाणुजुत्ते वट्टिय। वार्तध्यान से दुखित होकर संकलश यात्र रात्र पूर्ण करके प्रमात होते मेरी बाया. बहो मेय ! क्या यह पात सत्य है ? हो भगवन् ! यह बात सत्य है. ॥ १३॥ परंतु बहो मेय! इससे पूर्व सासरे मर में तू वैतादयगिरि पर्वत के पास शंख पूर्ण समान, उनस, विमल ।। निर्मल विसा, गाय के दूध जैसा, समुद्र के फेन जैपा, पानी के कण जैसा तेजस्त्री, सात हाय का उवा, मदाय का लम्बा, दश हाथ का उदर स्थान, चार पांव, ५ सूद६ पुंछ और इन्द्रिय ये सार अंय मुक्ति , जमीन कोलगते सौम्य,मुरुर, बागेस संचा, सुखकारी स्कंधवाला, पछि सूथस जैसा नीचा, बकरीट समान अंग पृष्ट भागवाला, छिद्र व खो गहित, अपलक्षण रहित लम्बी कलीवाला, लम्बोद लम्स मुंडन पर बाससाने गुरे धनुष्य जैसे विशिए पृष्ट भाग पा, पीली हुई प्रमाणा पंचा
पंचकुमार) का भय अध्ययन
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