Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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परमाउयं पालइ २ चा अहवनदहहे कालमासेक लकिच्चा इहेव जंबुद्दीवे २ भारहेवाखे दाहिणभरहे गंगार महाणईए दाहिणे कृले विज्झगिरि पायमूले एगणं मत्तवर गंधहत्थिणा, एग ए वर करेणए कुच्छसि गयकलभए जणिए ॥ १४५ ॥ तएणं सागय कलभिया णव: माताणं वसंतमासंमि तुम. पयाया । तएणं तुम मेहा ! गम्भवासाआ विप्पलके समाणे गयकलभयाधि होत्था, रत्तुप्पलरत्त सूकमाले जासमणरत्तपालि जत्तए लक्खारस सरस कुकुम संझब्भरागवणे, इट्ट णियगस्त
जवइणो गणियायाराकरेणु कोत्थहत्य अगहत्थिमयसपरिवुडे रम्मे सुगिरिकाणणेसु अथकाल अवसर में काल कर इस ही जम्बूद्वीप के भरन क्षेत्र में दक्षिणार्ध भरत में गंगा महा नदी के
दक्षिण नारा पर विध्यगिरी पर्वत के मूल में एक मदोन्मत्त गंध हस्ति से एक श्रेष्ठ अथिणी की कुति में हाथी को बच्चा जन्म लीया ॥ १४५ ॥ उस समय में वह हाथीनि का नवमास परिपूर्ण हुए पीछे वर्मत काल में तेरा जन्म हुवा. इस तरह गर्भ से मुक्त होने से तू हाथी का बचा हुआ. तू रक्त कमल समान रक्त वर्गाला, सकुपार कोमल शरीरवाला, जाई के पुष्प जैसा, पारिजात वृक्ष विशेष, लाख का * रस, ताजा कुमुय का रंग व संध्या राग समान लाल रंगवाला इष्टकारी अपना यूथ के अधिपनि. गणिका समान विपयाली दाक्षिणीक उदर में संद रखनेवाला अर्थात् कामक्रीडा में नत्पर, अनेक गणों से पर
पष्ट ज्ञाता धर्मकथा का-प्रथम श्रुतध
उत्क्षिप्त मेघकुमार का प्रथम अध्याय 47
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