Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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खर फरुत चंडमारुय सुधातणपत्त कयवरवातुलि भमतदित्त संभंतसावयाओलीमग. तण्हा । बचण्हंपट्टेस गिरिवरेस संवइसुतत्यानयासबसिरीलिवन अववालिय वयण विवरणिलालियग्गजी हे महंत तुबइय पुणकपणे संकचियघोर पविरकरे ऊसियलंगले पीणइय विरलरडिय तदेणं फोड यंतेव अंबरतलं पाबददरएयां
कंपयतेव मइणितलं, विणिमुयमाणेय सीयसीयरं सव्वओ समता वलिवियाणा इच्छिमाणे स्थानभ्रष्ट होने से दीन दया जा क रने लगे, आनंद शब्द होने लगे. अती कर्कश कठोर अ.नेष्ट रिष्ट कोवे का आवाज होने लगा. उ. ५क्त में विदुर-प्रवाल, जैसे लाल रंग समान बन का अग्नभाग प्रज्वलित हुवा. उम स्थान पर तृपा से पीडित मुख विकासकर व पांखो प्रसार कर पडे हुवे व गिव्हा तालु से बाहिर निकाल हुवे ऐसे पक्षियों के समुह पडे थे. तडफडते उश्वास डालते ग्रीष्म ऋतु का वायु सूर्य के किरण से ऊष्ण हुवा, तीक्ष्ण, अमुहा !णा, फरुप-खराब स्पर्शवाला, वायु शुष्क तृण पत्र व कचार पर परिभ्रमण करन लगा, भ्रम को प्राप्त होने से आवागमन करते हुए दीत मनाले साद सिंहादिक जीव आकलव्याकुल हुए. मग उष्ण,परिचिक व पानीके शांझवाराबंधहुधा.. बड पति में संवर्तक वायु चलने से त्रास को प्राप्त मनादि, अटवि के तुष्पद जीवों, सरिमप गोह प्रमुख उरपर भी बाला बन हवा. वह वन इस प्रकार होने से सुमेरुपम हस्तीने भी साप से ततवनकर अपना पख
पकुमारका गम अध्ययन 4
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