Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मगपुण परिसक्याए; से जहा गार उपस पउमेहका कुमुदेवया, पंकजाए जलेसु संवहिए गोवलिप्पड़ करएण,गोबलिप्पह जलरएणं एवामेव मेहेकुमारे कामजाए भोगेसु संवदिए, जोबलिप्पकामपूर्ण, गोवलिप्पडभोगरएण, एस वाणुपिया ! संसारभउविगे भीएजम्मगजरामरणानं, इछह देवाणुप्पियाण अंतिए मुंडे भविता आगारामो अणगारियं भवत्सए । अम्हे देवाणपिका सिरसभिकर रलपामो, पडिग्छ तुमेणं देवास्क्यिा ! सस्सभिक्ख १२६ तएवं समणे भगवं महाधार मेहस्सकुमारस्स अम्मापिउहिं एवं कुते समाणे एषमटुं सम्म पडिसुणे ।। १२७॥ एक से मेहेकुमारे समलस भग महावीरस्स अतिया, उत्तर दुर्लभी तो देखनेका कहनाहीया और भी जैसे उसलकाल,पकमल, कुमर दर्षय उत्पमावा बगल में वृदिपाया परंतु पंकरज करडेपाय नही, मलरज करवायना से होगा मेषकुमार भाप से उपभमा भोग वृद्धिपाया परंतु कामभोगरूपरजस लिसपनानी,अहो देवानुधियापर संसार मपये दिपावा व नन्पजरा मरण गरें इस लिपे अहो देवानुमिष ! यह आप की पास मुंह बनकर हवास से साधु पना भागीकार करना चाहता है. अहो देवानुमिय! हम आपको शिष्य भिक्षादेते और आपयह शिष्य मिलानाप करें.॥१२॥ प्रपन भगत महापार स्वामीने पेषकुमार के मातपिता के उक्त वचनों सम्पर प्रकार ने मुने ॥ १७ ॥
रिक्षत (कुगर)का प्रथम अध्ययन 4.14
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