Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
.
488
48.पष्टमांग-ज्ञाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
गिहस्सणगरस्स 'अण्णेर्सिच बहुणं गामागरणगर जाव सणिवेसाणं आहेवच्चं जाब विहरहि तिकटु, जय २ सदं पउज्जति ॥ १०९ ॥ तएणं से मेहरायाजाए. महया जाव विहरति ॥ ११ ॥ तएणं तस्स मेहस्सरण्णो अम्मापियरो एवं वयासीभणजाया! किं दलय मो,? किं पयच्छामो,? किं वा ते हियइच्छिए? सामत्थे? ॥तएणं से मेहेराया! अम्मापियरो एवं व्यासी-इच्छामिणं अम्मयाओ! कुतियावणाओ रयहरणं परिग्गहंचआणियं कासवयंचसदावितए ॥ १११ ॥ तएणं से सेणिएराया :
कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ २. एवं वयासी-गच्छहणं तुमे देवाणुप्पिया ! सिरिघराओ: यावत् भरव राजा जैसे सब मनुष्योंका गजगृह नगर, व अन्य बहुत ग्राम, आगर, नगर यावत् सभिवेशका अधिपतिपना करते हुवे विचरो. यों कहकर जयविजय शब्दों का प्रयोगकर बधाये॥१०९।। तबवह मेघकुमार मेघराजा महाहेमवंत पर्वत जैसे हुई यावत् विचरनेलगे॥११०॥उससमय मेघराजा को मातपिला ऐसा अहो पुत्र! तू कहेकि तुझेक्या देवें? क्या चहाताहै ? क्या तेराहितकरें ? किसमर्थहै ? तब मेघराजा मातपिताको ऐसा बोले अहो मातपिता!कत्रिक वणिककी दकानसे रजोहरण व पात्रेलाना और नापित वोलाना मैं चाहता है। ॥१११॥उससमय श्रेणिकराजाने कौटुम्विक पुरुषों को वोलाकर ऐसाकहा-अहो देवानुप्रिय! तुपलक्ष्मीक भंडार ।
उत्क्षिप्त ( मेयकुमार ) का प्रथम अध्ययन
अर्थ
1. f
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org