Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
कप्परुक्खंमिव अलंकिय विभूसियं करेंति ॥ ११९ ॥ तएणं सेणिएराया कोडुबिय पुरिसे सद्दावेइ २ एवं वयासी-खिप्पामेव को देवाणप्पिया! अणेगखभसय सण्णिविट्ठ, लीलट्रियसालभांजियागं.डहमिय उसभ तरंगणार मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वणलय पउमलय भत्तिचित्तं घंटावलिमहर मणहरसरं सुभकंत दरसणिजं णिउणोचिय मिसिमिसित्त मणिरयण घंटियाजाल परिखितं, खब्भुगय वइरवेझ्या परिगयाभिरामं विजाहरजमलजंतजुत्तंपिय अच्चीसहस्समालणियं रूवगसहस्स
कलियंभिसमाणं चक्खूलोयणलेसंसुहफासं सस्सिरीयरूवं सिग्धं तुरियं चवलं चार प्रकार की माला से मेधकुमार को कल्पवृक्ष समान अलंकृत विभूषित कीया ॥ ११९ ॥ तत्र श्रेणिक राजाने कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाये और कहने लगे कि-अहो देवानुप्रिय ! तुम अनेक स्थं वाली, लीला सहित क्रीडा करती हुई पूतलीयोंवाली, शाहमृग, वृषभ, अश्व, मनुष्य, मगर, पक्षी, वगले, किन्नर.. अष्टापद, चवरीगाय, हाथी, वनलता, पद्मलता, वगैरह चित्रों से चित्रित, चारों तरफ मधुर २ स्वर करती हुई घुघरियोंवाली, शुभ, कांतकारी, अच्छे पुरुष से बनाई हुई, चंद्रकांतादि मणि रत्नों की घंटिका जाल
वालीस्थंभ पर रही हई वज़की वेदिका से संपर्ण विटी हुई,अभिराम,विद्याधारों के युगलोंकी पंक्तियों वाली, 35 10 सूर्यके सहश्र किरणों समान क्रांखिकर मुशोभित,हजारों रूपों सहित, नेत्रको अतृप्त, सुख स्पर्शवाली सश्रिक.
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्यालाप्रसादजी *
अ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org