Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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श्री अमोलक ऋषिजी
माया महरिहेणं हंसलक्खणपड साडएणं अग्गक पडिच्छइ २, सुरभिणागंधोदएण. पक्खालेइ, सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चा ओदलयइ २ से पाएपोत्तीए बंधति रयण समुन्गयंसि पक्खिवइ मंजूसाए पक्खिवइ,हारवास्धिार सिंदुवार छिण्णमुत्तावलि पगासाई अंसुयाई विणिम्मुयमाणी२रोयमाणी २कंदमाणी विलवमाणी एवं वयासी-एसणं अम्हंमेहकुमारस्स अब्भदएसुय, उस्सवेसुय, पसवेसुथ, तिहीसुय, छणेसुय,जण्णेसुय,पव्वणीसुय, ... अपच्छिमदरिसणे भवइइत्तिकटु, उस्सीसामू टुवेइ ॥ ११७ ।। तएणं तस्स मेहस्स...
कुमारस्स अम्मापियरो उत्सरावकमाणं सिहासणं रयावेइ मेहंकुमारं दोच्चपि तच्चपि होये, और सुगंधित पानी से उन का प्रक्षालन कीया, श्रेष्ट गोशीर्ष चंदन छांटकर श्वेत वस्त्र में ब रत्न के डब्बे में रखे.. वह डब्बा संदूक में रखा, तूटा हुवा मोती का हार बर्षाद की धार अथवा सिंदुर वृक्ष के पुष्पों गिरे वैसे अश्रु वर्षाती हुई, रोती हुई, आक्रंद करती हुई और विलाप करती हुई धारणी राणों ऐसा बोलने लगी-कि मेघकुमार के दर्शन तो हम को दुर्लभ होंगे परंतु यह बाल प्रातःकाल में, किसी प्रकार के उत्सव में, किसी प्रकार के उत्तम पर्व में, उत्तम तिथि में यज्ञादि प्रयोजन में व प्रवणी में अपश्चिम दर्शनाला होंगे वारंवार दर्शन होंगे] यों कहकर उत संदूकको उसीसे(तकये)के नीचे रखी ॥१.१७॥ तब मेघकुमारके मातपिताने उत्तरदिशामें सुख रहवसे सिंहासन बनवाया और मेघकुमारको उसपर बैठाचा फर दो
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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