Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
48 अनुवादक- वालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
पडिवोहिए, अट्ठारसविहिप्पगारं देसी भासाविसारए गीइरइ गंधव्व णढकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोग समत्थे साहसीए वियोलचाली जातेयाविहोत्था ॥ ७९ ॥ तएणं तस्स मेहकुमारस्स अम्माप्पियरो मेहं कुमारं बाव तरिकाला मंडियं जाव वियालचारि, जायं पासइ २ ता अट्ठयासायव डिसए करेइ २ अमुग्गय मूसिय पहसिएचिव मणिकणगरयण भत्तिचित्ते वाउडुय विजय वैजयंती पडाग, छताछत्तकलिए तुंगे मगणतल मभिलंघमाण सिहरे जालंतर रयण.
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१८ त्वचा व ९ मन, यों नव सुप्त अंगों जागृत हुत्रा अर्थात् नव अंगों उपयोग योग्य हुए, अठारह देश की { भाषा बोलने में पण्डित हुए, गीत गाने की, गीत श्रवण की, गंधर्व नाटक की कलम में प्राण होने लगे; घोडा, हाथी व रथ को फीराने में व विविध प्रकार के युद्ध में प्रवृत हुए, अन्य का मर्दन करने लगे; भोग भोगने में समर्थ हुए, साहसिक धैर्यवंत हुए, विचारवन्त व बलवन्त हुए और उचित समय में गमन करने लगे. ऐसे लक्षण युक्त मेघकुमार हुए ॥७९॥ अब मेघकुनारको बहात्तर कला में निपुण यावत् कालाकालमें गमन करनेवाला जानकर मेघकुमार के पिताने उस के लिये आउ प्रासादावतंसककरायेः वे आठों प्रासाद) अत्यंत ऊंचे स्यात् हसते होवे वैसे व चंद्रकांतादिमणि, सुत्रर्ण च कर्केतनादि रत्नसमान आश्चर्यकारी थे. उनपर पा
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● प्रकाशकर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
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