Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
पष्टमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
पाएएवा तुंमंचणं जाया ! सुहसमुचिए; णो चैवणं दुहसमुथिए, जालंसीय, गालंउण्हं, 'गालंखुहं, णालंपिवासं, णालंवातय, पित्तिय, संत्तिय, सण्णिवाइव, विविहे रोयातके उच्चावए. गामकंटए, बावीसंपरीसहोरसग्गंउदीपणे सम्मंअहियासित्तए भुजाहि ताव जाव माणुस्सए कामभोगे तओपच्छा भुत्तभाइ समणस्स भगवओ महावीरस्स जाया ! पत्वहस्ससि ? ॥ १०४ ॥ तएणं से मेहेकुमारे अम्मापिउहिं एवं
बुत्ते समाणे अम्मापियरं एवं वयासी-तहेवणं तं अम्मयाओ!अण्णं तुम्भे ममं एवं वयह को देने के लिये बनाया 'हुवा कच्चे मूल का भोजन,कच्चे कंदका भोजन, कई बीजका भोजन व हरिवनस्पति का भोजन खानेको व पीने को नहीं कल्पता है. अहो पुत्र! तू सुखी सुकमाल है, तैने कभी दुःख नहीं देखा है, तू शीत, ऊषण क्षुधा, पिपासा, वात, पित्त, कफ, सन्निपात, विविध प्रकार के रोग, ऊंच नीच इन्द्रियों को कांट के समान दर्वचन व उदय आये हुवे बावीस परिसह सम्यक प्रकारसे सहन करने को समर्थ नहीं है. इमलिय मनुष्य सम्बन्धी भोग भोगवो तत्पश्चात भुक्त भोगी बनकर श्रमण भगवंत महागीर स्वामी की पाम जाकर दीक्षा अंगीकार करना. ॥१०४॥ तब वह मेघ कुमार मातपिता के कहने पर एमा बोला-अहो ईमानपिता! तुम मुझे ऐसा कहते हैं कि नियन्थ के प्रवचन सत्य अनुचर वगैरह हैं यावत् भुक्त भोगी बनकर
+ उस्क्षिप्त (मेधकुमार) का प्रथम अध्ययन *
।
-..
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org