Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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Ramani
428ष्टमांग-ज्ञाताधर्म कथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48+
एवं वयासी-एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंति धम्मेणिसंते सेवियमे धम्मे, इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ॥ ९४ ॥ तएणं तस्स मेह
कुमारस्स अम्मापियरो एवं वयासी-धण्णोसिणं तुम जाया! संपुणो कयत्थो कयलक्खणो - सिणं तुम जाया! जेणं तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते सेविक . तेधम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ॥ ९५ ॥ तएणं से मेहकुमारे अम्मापियर
दोचंपि तच्चंपि एवं वयासी-एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्सा १ अंतिए धम्म णिसंते सेवियधम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए. तं इच्छामिणं अम्मवहां आये, वहां आकर मातपिता के पाद वंदन कीया.और मातपिता को ऐसा कहने लगे. अहो मातपिता! मैंने श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास से धर्म सुना है. उस धर्म को मैंने इच्छा है विशेष इच्छा है उस की मुझे रुचि हुई है ॥ ९४ ॥ तब मेघकुमार के मातपिता ऐमा बोले अहो पुत्र ! तुझे. धन्य है तू कृतार्थ है,
संपूर्ण व कृतलक्षणाला है क्यों कि तैने श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास से धर्म सुन olo वही धर्म तैने इच्छा है विशेष इच्छा है और उस की रुचि तैने की है ॥ ९५ ॥ अब मेघकुमारने दो तीन
वक्त ऐसा कहा अहो मातपिता. ! मैंने श्रमण, भगवंत महावीर स्वामी की पास से धर्म सुना है वही धर्म
samanianimari 402112 उत्क्षिप्त (म्घकुमार) का प्रथम अध्ययन 48
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