Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! से जहेव तुब्भे वयह जं णवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो अपुच्छामितओ पच्छा मुंडेभवित्ता पब्विइस्सामि ॥ ९२ ॥ अहासुहं देवाणुप्पिया ! मापडिबंधं करेह ॥ ९३ व से मेहकुमारे समणं भगवं यहावीरं बंदइ णमंसइ २ जेणामेव चाउघंटे आसरहे, तेणामेव उवागच्छइ२ चाउघंटं आसरहं दुरूहइ महया डचडकरपहकरणं रायगिहस्सणगरस्स मज्झं मझेणं जेणामेव ए भवण तेणामेव उवागच्छइ रचउघंटओ आसरहाओ पच्चो रुहइ
जेणामेव अम्मावियरो तेणामेव उवागच्छइ २ त्ता अम्मापिउणं पायवडणं करेइ २ उपस्थित हुदा हूं अहो भगवन्! यह वैसेहो है,तथ्य है विशेष तथ्य है मैंने यह इच्छा है. विशेषइच्छे है,वारम्बार इच्छा है जैसे पापकहतेहो वैसे ही हैं. परंत अहो देवाणप्रिय! मेरे मातपिताको पुछकर पीछे मुंड होकर प्रवजित होवूगा. ॥ १२ ॥ भगवंतनं उत्तर दिया अहो देवानुप्रिय ! तुम को जैस सुख होये वैसे करो, विलम्ब मत करा ॥ ९३ ॥ तत्वश्चात मेघकुमार श्रमण भगवंत महावीर का वंदना नमस्कार कर चार घंटावाला अश्च रथ की पास आये और उसपर आरूढ होकर बडे सुभटों के परिवार सहित राजगृह नगर की मध्य में होते हुए अपने भवन में आये, वहां जार घंटावाला अश्वरथ से नीचे उतरकर जहां अपने मातपिता यह
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादमी *
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org