Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
षष्टमांग-ज्ञाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध-48+
पंचवण्ण घंटा पडाग परिमंडियग्गसिहरं धवलमरीचिक बयविणिमुयंत लाउल्लाइय महियं जाव गंधवट्टीभूयं पासादियं दरिसणिजं अभिरूवं पडिख्वं ॥ ८१ ॥ तएणं तस्स मेहकुमारस्स अम्मापियरो मेहकुमार सोहणतितिहिकरणनक्खत्तमुहुर्तसि सिरिसयाणं सरिसन्बयाणं सरिसतयाणं सरिरलवण्णरूवजोव्वणगुणोववेयाणं सरिसएहितो रायकुमलेहिंतोअणिल्लियाणं पसाहणट्टग अविहव बहुउवयण मंगल सुजंपितेहिं अट्ठहिं रायवरकण्णाहिंसद्धिं एगदिवसेणं पाणिगिण्हावेसुं ॥ ८२ ॥ तएणं
तस्स मेहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं पीइदाणं दलयंति--अटुहिरण्णकोडीओ, हैं देदिप्यमान कवच सहित था. वह भवन लीपा हुवा स्वच्छ कीया हुवा था. स्थान २ पर सुगंधि वत्तीयों रखी हुई थी, इस तरह यह भवन देवताओं के चित्त को प्रसन्न कर्ता था तो मनुष्य का तो कहना ही क्या देखतेहृधे कीलामना नहीं पावे वैसा अभिरूप व प्रतिरूप था ॥८॥ तत्पश्चात् मेधकुमार को उन के मातपिताने समानवयवाली,सरीखा स्वचावाली,लावण्य,रूप,वौवनादि विविधगुणों वाली समान कुल में से लाई हुई है। ऐमी आठगज कन्याओंका आठों अंगोंमें मंडन करनेवाली विवाह क्रिया रूपमांगलिक कार्य होवे पैस स्त्री से एक दिन में पाणिग्रहण कराया ॥ ८२ ॥ उस मेघकुमार के मातपिताने आठ करोड हिरण्य [चांदि] आठ क्रोड मुवर्ण, यावत आठ पेमण काम करनेवाली व विपुल धन कनक, रत्न, मणि, मोती, शीला,
480 उत्क्षिप्त (मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन 48
OYO
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International