Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
भाषा
विपर्ययावधस्यात्मलाभे सति ज्ञानादेव तद्विनिवृत्तस्त्रित्वानुपपत्तिः॥१॥ किसीका मत है कि विपर्ययज्ञानसे कर्मोंका बंध होता है। जिससमय विपर्ययज्ञान नष्ट हो जाता है उससमय आत्मामें तत्त्वज्ञान प्रगट हो जाता है और उससे फिर कर्मबंध नहीं होता क्योंकि कारणके | नष्ट हो जानेसे कार्यका भी नाश हो जाता है । यहां पर कारण विपर्ययज्ञान, और कार्य कर्मबंधका होना है । तथा बंधका न होना ही मोक्ष है । इसरीतिसे जब मोक्षकी प्राप्तिमें तत्त्वज्ञान ही कारण है तब
सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्बारित्र तीनोंको कारण कहना व्यर्थ है। यदि कदाचित् जैनसिद्धांB तकार यह कहैं कि
प्रतिज्ञामात्रमिति चेन्न सर्वेषामविसंवादात् ॥२॥ विपर्ययज्ञानसे कर्मबंध होता है यह बात कहनेमात्र है युक्तिसिद्ध नहीं । सो भी ठीक नहीं। | "विपर्ययज्ञानसे बंध होना" सभी वादी प्रतिवादीको इष्ट है। जिसतरह कि
.. .. . धर्मेण गमनमूर्ध्वमित्यादिवचनमेकेषां ॥३॥
धर्माचरण करनेसे ऊलोककी ब्राह्मय १ सौम्य २ प्राजापत्य ३ इंद्र गांधर्व ५ यक्ष राक्षस | और पिशाच ८ नामक जातियों में उत्पत्ति होती है । अधर्माचरणसे मानुष १ पशु र मृग ३ मत्स्य ५
१ धर्मेण गमनमूर्ध्व गमनमघस्ताद्भवत्ययोंण । ज्ञानेन चापवर्गों विपर्ययादिभ्यते पन्धः ॥४४॥ सांख्यतचकौमुदी । २ प्रकृते. महांस्ततोऽहंकारस्तस्माद्यश्च षोडशकः। तस्मादपि षोडशकात् पंचभ्यः पंचभूनानि ॥ २२ ॥ सांख्यतत्वकौमुदो ॥ अर्थात् प्रकृतिसे P बुद्धि, बुद्धिसे अभिमान, अभिमानसे स्पर्शन रसना आदि पांच बुद्धींद्रिय पाणी पायु लिंग आदि पांच कर्मेंद्रिय और मन ये ग्यारह । इन्द्रियों तथा शब्द स्पर्शन आदि पांच तन्मात्र ये सोलह तथा स्पर्शन आदि पाच तन्मात्राओंसे आकाश पृथ्वो आदि पांच भूतोंकी उसत्ति होती है।
+ 5955555ॐy
RBALARAMBREASEDGEARNEDASRECIAL