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श्रीमद् राजचन्द्र तरवार बहादुर टेकधारी पूर्णतामा पेखिया, हाथी हणे हाथे करी ए केशरी सम देखिया; एवा भला भडवीर ते अंते रहेला रोईने, जन जाणीए मन मानीए नव काळ मूके कोईने ॥७॥
धर्म विषे
कवित्त * साह्यबी सुखद होय, मानतणो मद होय,
खमा खमा खुद होय, ते ते कशा कामर्नु ? जुवानीनू जोर होय, एशनो अंकोर होय, दोलतनो दोर होय, ए ते सुख नामनु; वनिता विलास होय, प्रौढता प्रकाश होय, दक्ष जेवा दास होय, होय सुख घामर्नु, वदे रायचंद एम, सद्धर्मने धार्या विना, जाणी लेजे सुख ए तो, बेए ज बदामर्नु ! ॥१॥ मोह मान मोडवाने, फेलपणं फोडवाने, जाळफंद तोडवाने, हेते निज हाथथी; कुमतिने कापवाने, सुमतिने स्थापवाने, ममत्वने मापवाने, सकल सिद्धांतथी; महा मोक्ष माणवाने, जगदीश जाणवाने, अजन्मता आणवाने, वळी भली भातथी; अलौकिक अनुपम, सुख अनुभववाने,
धर्म धारणाने धारो, खरेखरी खांतथी ॥२॥ ७ जो तलवार चलानेमे बहादुर थे, जो अपनी टेकपर मरनेवाले थे, सब प्रकारसे परिपूर्ण दीखते थे, जो अपने हाथोसे हाथीको मारकर केसरीके समान दिखायी देते थे, ऐसे सुभटवीर भी अतमें रोते ही रह गये। इसलिये हे मनष्यो ! इसे भली भांति जाने और मनमें ठाने कि काल किसीको नही छोडता।
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धर्मविषयक * भावार्य-१. सुखद वैभव हो, मानका मद हो, 'जीते रहें', 'जीते रहें' के उद्गारोंसे बधाई मिलती हो-यह सब किस कामके ? जवानीका जोर हो, ऐशका सामान हो, दौलतका दौर हो -यह सब सुख तो नामका है । वनिताका विलास हो, प्रौढताका प्रकाश हो, दक्ष जैसे दास हो, सुविधायुक्त घर हो । रायचद यह कहते हैं कि सद्धर्मको धारण किये बिना यह सब सुख दो ही कौडीका है।
२ अपने ही हाथसे प्रेमपूर्वक मोह और मानको दूर करनेके लिये, ढोगको मिटानेके लिये, कपटजालके फदको तोडनेके लिये, सकल सिद्धान्तकी सहायतासे कुमतिको काटनेके लिये, सुमतिको स्थापित करनेके लिये और ममत्वको मापनेके लिये, भली भांति महामोक्षको भोगनेके लिये, जगदीशको जाननेके लिये, अजन्मताको प्राप्त करनेके लिये, तथा अलौकिक एव अनुपम सुखका अनुभव करनेके लिये सच्चे उत्साहसे धर्मको धारण करें।