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वाली तीर्थ वन्दना आदर सहित क्यों न करना चाहिये ? जो पुरुष * छ:-- री पालन करके पैदल ही शत्रुजय तीर्थकी सात यात्राएं करता है, वह पुरुष धन्य व जगत-मान्य है। कहा है कि
छ?णं भत्तेणं अपाणएणं तु सत्त जत्ताओ ।
जो कुणइ सित्तुंजे सो तइअभवे लहइ सिद्धिं ॥ १॥ जो मनुष्य लगातार चौविहार छह करके शत्रुजय तीर्थकी सात यात्राएं करता है वह तीसरे भवमें सिद्धिको प्राप्त होता है।
जिस भांति मेघजल काली मिट्टीमें मार्दव ( कोमलता) उत्पन्न कर देता है उसीभांति गुरुमहाराज श्रीश्रुतसागरसूरिके वचनसे राजा जितारीका मन भद्रक होनेसे अत्यन्त कोमल होगया । सूर्यके समान श्रीश्रुतसागरसूरिके सूर्यरश्मि समान वचनोंसे जितारी राजाके मन में स्थित मिथ्यात्व-तमका नाश होकर सम्यक्त्वरूप प्रकाश उत्पन्न होगया। समकित लाभ होनेसे राजाका मन शत्रुजयकी यात्रा करनेको बहुत उत्सुक होगया जिससे उसने शीघ्र मंत्रियोंको आज्ञा की कि, “हे मंत्रीजनों! बहुत जल्दी यात्राकी तैयारी करो।" यह कह कर राजाने सहसा ऐसा अभिग्रह लिया कि, “ जब मैं पैदल चल कर
* १ एकलहारी-दिनमें एक समय भोजन करना. २ सचित्तपरिहारी-सचित्त वस्तुका त्याग करना. ३ ब्रह्मचारी-ब्रह्मचर्य पालन करना ४ पयचारी-पैदल चलना. ५ गुरुसहचारी-गुरुके साथ चलना. तथा ६ भूमिसंथारी-भूमि पर सोना ।