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प्रथम अध्मयन : हिंसा - आश्रव
५३.
आसक्त होकर मारते हैं, ( मुद्धा हति) कई किसी पर मुग्ध (फिदा ) होकर मारते हैं या मूढ बन कर मारते हैं (कुद्धा लुद्धा मुद्धा हणंति) कई क्रोधी, लुब्ध और मुग्ध कर मारते हैं, (अत्थाहणंति) कई अर्थ के निमित्त से मारते हैं, (धम्मा हणंति ) कई धर्म के नाम पर मारते हैं; (कामा हणंति) कई कामभोग के लिए मारते हैं, ( अत्या धम्मा कामा हणंति) कई अर्थ - धनसम्पत्ति, धर्म और काम को लेकर मारते हैं ।
मूलार्थ --- कई पापिष्ठ, असंयमी, पाप क्रिया से अविरत, मन वचन काया को अनुपशान्त परिणामों में दुष्प्रयुक्त करने वाले, दूसरों को दुःख देने में उद्यत इन आगे कहे जाने वाले त्रस और स्थावर जीवों के द्वेषी लोग पूर्वसूत्रोक्त अनेक प्रकार के उस भयंकर प्राणिवध को करते हैं ।
a जिन-जिन प्राणियों का और जिस-जिस प्रयोजन से वध करते हैं ; उनके नाम इस प्रकार हैं- पाठीन, तिमि, तिमिंगल ( महामत्स्य), विविध प्रकार की छोटी मछलियाँ, अनेक जाति के मेंढक, दो प्रकार के कछुए, नक्रों का समूह, दो तरह के मगरमच्छ, मूढसंढ नामक मत्स्य, ग्राह ( घड़ियाल ), दिलिवेष्टक, मंदूक, सीमाकार और पुलक ये पांचों प्रकार के ग्राह, सुखसुमारशिशुमार इत्यादि ये और ऐसे अनेक प्रकार के जलचरजीवों का वे वध करते हैं ।
तथा हिरण, रुरु नामक मृग, अष्टापद नामक लोकप्रसिद्ध जंगली पशु, चमरी गाय, सांभर, भेड़, खरगोश, प्रशय नामक दो खुरों वाले जंगली जानवर, बैल, रोहित नामक चौपाया जानवर, घोड़ा, हाथी, गधा, ऊंट, गैंडा, बंदर, रोजनामक जंगली गाय ( गवय), भेड़िया, गीदड़, चूहे की - सी आकृति वाला कोल, बिलाव, बड़ा सूअर, श्रीकंदल और आवत' नामक एकखुर वाले पशु, लोमड़ी या रात में 'कों कों' करने वाला कोंकतिक नामक जंगली जानवर, दो खुरवाला गोकर्ण, मृग, भैंसा, बाघ, बकरा, चीता, कुत्ता, बिज्जू (जरख ), छ, भालू, शार्दूल (केसरी सिंह), सिंह और चिल्लल इत्यादि ; ये और इस प्रकार के और भी अनेक प्रकार के चौपाये जीवों को वे मारते हैं ।
इसी प्रकार अजगर, बिना फन वाले सर्प, दृष्टिविषसर्प, परड़, दर्वीकर, दर्भ पुष्पसर्प, असालिक सर्प, महोरग ( विशाल काय सांप ) ; इत्यादि नानाविध पेट के बल चलने वाले उरः परिसर्प जानवर हैं । इन सब सर्प जातीय प्राणियों का वे क्रूरकर्मा वध करते हैं ।
इसी प्रकार क्षारल, सरम्ब, सेहला (कांटेदार काला जीव), शल्यक, गोह, चूहा, नेवला, गिरगिट, कैंकड़ा, जाहक, छछुंदर, गिलहरी, वातोत्पत्तिक