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नौवां अध्ययन : ब्रह्मचर्य-संवर
७५३ उपसंहार-इन पांचों भावनाओं से मन-वचन-काया को परिरक्षित करने पर यह चतुर्थ संवरद्वार-ब्रह्मचर्य सम्यक् प्रकार से सुरक्षित हो जाता है और साधक के दिल दिमाग में ब्रह्मचर्यनिष्ठा जम जाती है। परन्तु इस पंचभावना प्रयोग को सिर्फ एक ही दिन करके न रह जाना चाहिए, अपितु धैर्य सम्पन्न बुद्धिशाली साधु इसे जिन्दगी भर प्रतिदिन करे। शेष सारे पाठ की व्याख्या पूर्ववत् समझ लेनी चाहिए।
इस प्रकार सुबोधिनी व्याख्या सहित नौवें अध्ययन के रूप में चतुर्थ ब्रह्मचर्य संवरद्वार सम्पूर्ण हुआ।
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