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दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह संवर
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सहिय संवडे ) ईर्या आदि समितियों से युक्त, ज्ञानदर्शनसहित और संवर से सम्पन्न (सया जयणघडण सुविसुद्धदंसणे ) प्राप्त संयमयोग को रक्षा तथा अप्राप्त संयमयोग की प्राप्ति के लिए सदा यतना-पूर्वक चेष्टा प्रवृत्ति करने से निर्मल दर्शन- सम्यग्दृष्टि वाला (संजते ) संयमी साधु (एए) उक्त संवरों का ( अणुचरिय) पालन करके (चरमसरीरधरे) चरमशरीरी - इसी अन्तिम शरीर को धारण करने वाला, (भविस्सतीति) होगा । वाचनान्तर के अनुसार ' कार्माणशरीर का ग्रहण फिर नहीं करेगा' ऐसा अर्थ होता है ।
मूलार्थ - इस पूर्वोक्त परिग्रहत्यागरूप, अन्तिम अपरिग्रह व्रत को पांच भावनाएँ होती हैं, जो परिग्रह से विरति अथवा अपरिग्रहनिष्ठा की सर्वथा सुरक्षा के लिए होती हैं । प्रथम भावनावस्तु इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रिय से मनोज्ञ और कर्णप्रिय शब्दों को सुन कर उनमें रागादि नहीं करना चाहिए। वे मनोज्ञ शब्द कौन-कौन से हैं? इसके उत्तर में कहते हैं बड़ा मृदंग, छोटा मृदंगपखावज, छोटी ढोलक, चमड़े से मढ़े हुए मुँह वाला कलश नामक बाजा, कच्छभी नामक बाजा, वीणा, विपंची और वल्लकी ( वीणा विशेष ), वृद्धीसक वाद्य, सुघोषा घंटा, भेरी आदि १२ बाजों की ध्वनि, वीणाविशेष, बांसुरी, तुनतुनी, पर्वक वाद्य, तंत्री, करताल, कांस्यताल, इन सब बाजों के शब्द, गीत तथा सामान्य बाजों को सुन कर तथा नट, नर्त्तक, बाजा बजाने वाले, पहलवान, मुक्केबाज, भांड, कथाकार, तैराक, रास करने वाले, शुभाशुभ फल बताने वाले, बांस पर चढ़ कर खेल दिखाने वाले, चित्रपट दिखाने वाले, तूण - (तुनतुनी) नामक बाजा बजाने वाले, तुम्बी की वीणा बजाने वाले, करताल, कांस्यताल, मजीरे बजाने वाले व्यक्तियों के विविध करतबों, अनेक सुरीले स्वर में गायकों के गीतों के मधुर स्वर, कांची और मेखला दोनों स्त्रियों के कमर के आभूषण, गले का आभूषण, प्रतरक व पहेरक नाम के गहने, झांझर या पायल, घुँघरू, घुंघरियां, जांघों पर पहनने का जालीदार रत्नजटित आभूषण, मुद्रिका, नेउर, चरणमालिका, सोने के लंगर, इन सब आभूषणों की सामूहिक आवाज. लीलापूर्वक मस्तानी चाल से चलती हुई ललनाओं के उद्गार तरुणियों में परस्पर होने वाला हंसी मजाक, मधुर स्वर में बातचीत, मधुर कंठ में रतिस्वर घोल देने वाली मंजुल बोली तथा बहुत से प्रशंसात्मक गुण-वचन, मधुर लोगों द्वारा किया गया कथन; इन तथा