Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 888
________________ दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह - संवर ८४३ चौथी भावनावस्तु इस प्रकार है - जिह्वन्द्रिय (जीभ) से मनोज्ञ तथा जिह्वा को प्रिय रसों को चख कर उनमें आसक्ति आदि नहीं करना चाहिए। वे शुभरस कौन-कौन से हैं? इसके उत्तर में कहते हैं कि घी और चासनी में डूबो कर बनाए हुए विविध पक्वान्न, विविध पेय पदार्थ, भोज्य पदार्थ तथा गुड़, खांड, तेल और घी से बनाए हुए भोज्य पदार्थ एवं अनेकप्रकार के मिर्च-मसालों-लवणरसों से युक्त, तथा मधु, मांस, कई तरह की मज्जिका, बहुत कीमत से बना हुआ भोज्य पदार्थ, खटाई, मिर्च, जीरा आदि का छौंक दे कर बनाई हुई स्वादिष्ट दाल तथा खटाई, सैंधानमक आदि डाल कर बनाया हुआ अचार, — अथाणा, दूध, दही, गुड़ व धातकी पुष्प आदि से बना हुआ सरक नामक पेय पदार्थ, जौ आदि के आटे से बना हुआ श्रेष्ठ मद्य, वारुणी, सीधु एवं कापिशायन नामक मदिराविशेष, अठारह प्रकार का शाक, अनेक प्रकार के मनोज्ञ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले बहुत-से द्रव्यों के मिश्रण से उपस्कृत-छौंक आदि दे कर संस्कारित करके बनाए हुए भोजनों में - तथा ऐसे ही अन्य मनोज्ञ स्वादिष्ट रसों में साधु आसक्ति न करे । उनमें राग, मोह, गृद्धि, लोभ, खुशी तथा अपनी आत्मा को उन पर न्योछावर करना साधु के लिए उचित नहीं है । यावत् उनके वारे में स्मरण तथा मनन भी न करना चाहिए । फिर दूसरे पहलू को देखें - जिह्व ेन्द्रिय (जीभ) से अमनोज्ञ और पापजन्य अशुभ रसों को चख कर रोष - द्वेषादि न करे । अशुभ रस कौन-कौन से हैं ? इसके उत्तर में कहते हैं - रसहीन, चलितरस या बिगड़े रस से युक्त ठंडा, रूखा, निःसत्त्व पेय पदार्थ एवं भोज्यपदार्थ तथा रातबासी, विनष्ट वर्ण वाले, सड़े बदबूदार, मनके प्रतिकूल, कीड़ों की उत्पत्ति से युक्त, (क) तथा फूलन से युक्त, विकृत अवस्था प्राप्त, अतएव बहुत ही दुर्गन्ध से भरे हुए, अत्यन्त तीखे कड़वे, कसैले खट्टे रस वाले एव कई दिनों तक पड़े हुए शैवालयुक्त जल के समान दुर्गन्धमय तथा नीरस पदार्थों में तथा इसी प्रकार के अन्य अमनोज्ञ एवं पापजन्य अशुभ रसों के विषय में निष्परिग्रही साधु को कोप, द्व ेष आदि नहीं करना चाहिए। यावत् उन अमनोज्ञ रस वाले पदार्थों या पदार्थ लाने वालों पर अवज्ञा, द्वेष, निन्दा, तिरस्कार, धिक्कार, डांटफटकार, जुगुप्सा - घृणा या नफरत नहीं करना चाहिए । इसी प्रकार जिह्वन्द्रियभावना से ओतप्रोत साधु की

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