Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 898
________________ दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवर ८५३ इष्टवियोगादि होने पर रोना-पीटना आक्रन्दन है, सूअर आदि के समान चींची, चिल्लपों आदि आवाज को 'रसित' कहते हैं; दयनीय वचनों को करुणवचन कहते हैं, आर्त स्वर को विलपित कहते हैं। ये सब अमनोज्ञ शब्द हैं, इन्हें सुन कर मन में द्वपादि नहीं करना चाहिए। चक्षुरिन्द्रियसंवररूप रूपनिःस्पृहभावना का चिन्ता, प्रयोग और फल-अपरिग्रहव्रती साधु जब अपनी दैनिक दिनचर्या में प्रवृत्त होता है तो कई रूप आँखों के सामने आते हैं, उनमें कुछ सचेतन प्राणी के भी होते हैं, कुछ अचेतन पदार्थों के भी। जैसे मनोज्ञ और नेत्रप्रिय सुहावने रूपों में सुन्दरी युवती, सुन्दर बच्चे, कुत्ते आदि के सलौने बच्चे, मृगशिशु, मोर, इसी प्रकार रंगविरंग चित्र, सुन्दर सफेद या अन्यरंग की खाने-पीने की चीजें, बढ़िया वस्त्र या पात्र अथवा और कोई भी चेतन या जड़ सुन्दर एवं आँखों को रुचिकर तथा मनोमोहक पदार्थ सामने आएं, तो उस समय यदि साध उस सुन्दररूप या चेहरे आदि को देख कर मन में रागभाव या मोह लाता है, उस सुन्दर रूप को टकटकी लगा कर देखने के लिए ललचाता है, बार-बार उसे देखने का लोभ करता है, उस रूप को आसक्तिपूर्वक देखने के लिए ठिठक जाता है, अथवा वहाँ से आगे चलने पर भी मन में बार-बार उसी रूप का स्मरण और मनन करता है, या पुन: पुन: उस रूप को देखने के लिए लालायित होता है; तो यहीं साधक की हार है । ये सारे ही रागभाव के प्रकार हैं, जो साधक को अन्तरंग परिग्रह के जाल में फंसा देते हैं । इसीलिए शास्त्रकार ने कुछ खास-खास मनोज्ञ रूपों के नाम गिना कर अन्त में उसी प्रकार के अन्यान्य रूपों के दृष्टिगोचर होने पर उन पर आसक्ति, अनुराग, गृद्धि, लोभ, मोह, न्योछावर, तुष्टि, स्मरण और मनन से शीघ्र बचने का चक्षुरिन्द्रियसंवरभावना के प्रकाश में निर्देश किया है—बितियं चक्खिदिएण पासिय रूवाणि मणुन्नाई भद्दकाई रूवेसु मणुन्नभद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं .... न सइंच मच तत्थ कुज्जा।' इन सूत्रपंक्तियों का अर्थ पहले स्पष्ट किया जा चुका है। इसी प्रकार इनके ठीक विपरीत अमनोज्ञ, आँखों को खटकने वाले, अप्रिय, पापकर्म के उदय से अशुभ कालेकलूटे, भौंडे, भद्दे, घिनौने, बीमार आदि के दयनीय रूपों को देख कर यदि साधक एकदम रुष्ट हो जाता है, क्रोध से झल्ला उठता है, उन कद्रूप व्यक्तियों या जड़ पदार्थों पर टूट पड़ता है, उन्हें तोड़फोड़ देता है, डांटताफटकारता है, उनकी निन्दा करता है, लोगों के सामने उन्हें धिक्कारता है, उनका आमान करता है, उन्हें दुरदुराता है, ठुकराता है, उनके प्रति नफरत फैलाता है, उन्हें हिकारतभरी दृष्टि से देखता है या धक्का दे कर, मारपीट कर उन्हें निकाल देता है या वहाँ से भगा देता है तो यहीं साधक की पराजय है। यहीं वह अन्तरंग परिग्रह

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