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उपसंहार अब शास्त्रकार शास्त्र की पूर्णाहुति पर इस शास्त्र का निम्नोक्त परिचयात्मक सूत्रपाठ द्वारा उपसंहार करते हैं
..मूलपाठ पण्हावागरणे णं एगो सुयक्खंधो, दस अज्झयणा, एक्कसरगा, दससु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जति । एगंतरेसु आयंबिलेसु निरुद्धेसु आउत्तभत्तपाणएणं अंगं जहा आयारस्स ।। (सू० ३०)
संस्कृतच्छाया . प्रश्नव्याकरणे एकः श्रुतस्कन्धो दशाध्ययनानि एकस्वरकानि, दशसु चैव दिवसेसु उद्दिश्यन्ते एकान्तरेषु आचाम्लेषु आयुक्तभक्तपानकेन अंगं यथाऽऽचारस्य ॥ (सू० ३०)
पदान्वयार्थ-(पण्हावागरणे) इस प्रश्नव्याकरणसूत्र में (एगो) एक (सुयक्खंधो) श्रु तस्कन्ध है । (दस अज्झयणा) दस अध्ययन हैं, जो (एक्कसरगा) समान शैली के हैं। (आउत्त भत्तपाणएणं) उपयोग युक्त आहार पानी वाले साधु द्वारा (जहा आयारस्स अंग) जैसे आचारांग का वाचन किया जाता है, वैसे ही (एगंतरेसु) एकान्तर (निरुद्ध सु आयंबिलेसु) लगातार बीच में रुकावट डाले बिना, आयंबिल तप से युक्त (दससु चेव दिवसेसु) दस ही दिनों में ये (उद्दिसिज्जंति) वाचन किये जाते हैं।
मूलार्थ- इस प्रश्नव्याकरणसूत्र में एक श्रु तस्कन्ध है, दस अध्ययन हैं, एक जैसे हैं, आचारांग सूत्र के व्याख्यान के समान उपयोगपूर्वक आहार पानी वाले साधु द्वारा लगातार (बीच में रोके बिना) एकान्तर आयंबिल (आचाम्ल) तप का आचरण करके दस ही दिनों में इनका वाचन किया जाता है।
व्याख्या ___ जैसी कि शास्त्रकार ने प्रतिज्ञा की थी, उसी प्रकार से उन्होंने प्रश्नव्याकरण सूत्र का दस अध्ययनों में निरूपण पूर्ण किया है। वास्तव में प्रश्नव्याकरण सूत्र का