Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 906
________________ दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रहसंवर साधक की अन्तरात्मा इन रागद्वेषरूपी अन्तरंग परिग्रहों पर विजयी बनेगी; शुभाशुभ स्पर्शों के संयोग में वह समभाव में स्थिर हो कर जितेन्द्रिय और स्थितप्रज्ञ बन जाएगी और वह साधक भो आत्मस्थ बन जाएगा। पंचम संवरद्वार का महत्त्व- एक दृष्टि से देखा जाय तो अन्य संवरों की अपेक्षा अपरिग्रहसंवर का दायरा बहुत विस्तृत है। क्योंकि परिग्रह में एक ओर सारा विश्व आ जाता है तो दूसरी ओर व्यक्ति का तमाम मनोलोक आ जाता है। विश्व की जड़ या चेतन, छोटी या बड़ी तमाम वस्तुएँ परिग्रह में आती है, तथा रागद्वं षजनक तमाम भाव भी परिग्रह में ही आते हैं। इसीलिए शास्त्रकार पहले की तरह इस परिग्रहविरमणरूप अपरिग्रह-संवरद्वार का माहात्म्य निम्नोक्त सूत्रपाठ द्वारा उपसंहार में व्यक्त करते हैं--- "एवं पंचमं संवरदारं फासियं..." आराहियं भवति ... - एवं नायमुणिणा भगवया महावीरेण पन्नवियं".."पंचमं संवरदारं समत्त ।" इन सब पंक्तियों का अर्थ पहले अनेकस्थलों पर स्पष्ट किया जा चुका है। पांचों संवरों का माहात्म्य और फल-अब शास्त्रकार पांचों ही संवरों का माहात्म्य और उनकी आराधना करने का सुफल निम्नोक्त सूत्रपाठ द्वारा बताते हैं"एयाई वयाई पंचवि. .. ... अणुचरिय संजते चरमसरीरधरे भविस्सतीति ।" इसका अर्थ तो हम मूलार्थ तथा पदान्वयार्थ में स्पष्ट कर आए हैं; किन्तु कुछ आशय स्पष्ट करना जरूरी है। ये पांचों महाव्रतरूप पांच संवर आस्तिक जगत् में प्रसिद्ध हैं। पातंजल योगदर्शन में इनके लिए कहा है _ 'अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा दिक्कालाधनवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ।' अर्थात्-'अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये ५ यम हैं । ये किसी खास देश, काल आदि से सम्बन्धित नहीं हो कर जब सार्वदेशिक और सार्वकालिक हैं तो सार्वभौम महाव्रत हो जाते हैं।' संसार में जो नियम या व्रत किसी एक देश या अमुक काल तक ही सीमित रहता है, वह उसके बाद अपना अस्तित्त्व खो बैठता है; निःसत्त्व बन जाता है। परन्तु ये पंच महाव्रत तो प्रायः सभी धर्मों और दर्शनों ने यम या व्रत के रूप में माने हैं। और सभी देश और सभी काल में ये पालनीय हैं। इनकी आराधना कहीं भी किसी भी स्थान या काल में की जा सकती हैं, ये सब जगह सुख देने वाले हैं । किसी भी धर्म, जाति, देश, वेष या काल का कोई भी पुरुष, स्त्री, बालक, वृद्ध, नपुंसक, इनकी भलीभांति आराधना-साधना करके सिद्धि-मुक्ति प्राप्त कर सकता है । इसीलिए शास्त्रकार ने स्वयं कहा है कि इन पांच महाव्रतों रूप संवरों का ५ समितियों से युक्त, २५ भावनाओं सहित, ज्ञानदर्शन से मन वचन काया

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