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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र अन्तरात्मा वस्तुस्वभाव में स्थिर रहे । इस प्रकार मनोज्ञ-अमनोज्ञ या शुभाशुभ रस वाले पदार्थों पर राग और द्वष से रहित साधु अपने मनवचन काया को इन अनिष्टभावों से बचा कर पंचेन्द्रियों का संवर करके चारित्रधर्म का आचरण करे।
पांचवीं भावनावस्तु इस प्रकार है स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा मनोज्ञ और स्पर्शनेन्द्रियप्रिय सुखद स्पर्शों को छू कर आसक्ति-रागादि नहीं करना चाहिए। वे शुभ स्पर्श कौन-कौन-से हैं ? इसके उत्तर में कहते हैं जिनमें पानी के फव्वारे चलते रहते हैं, ऐसे जलमंडप, झरने, श्वेतचन्दन, टंडा स्वच्छ पानी, अनेक प्रकार के फूलों की शय्याएँ, खस-खस, मोती, कमल की डंडी, रात्रि को छिटकने वाली चन्द्रमा की चांदनी, मयूरपिच्छ के चन्द्रकों से बने हुए पंखों तथा ताड़ के पंखों से उत्पन्न सुखकर शीतल हवा तथा ग्रीष्मकाल में सुखद शीतस्पर्श वाली बहुत-सी शय्याएँ, आसन तथा शीतकाल में ठंड मिटाने वाले गुणकारी ओढ़ने के वस्त्र, अंगारों से तापना - हाथ आदि सेकना एवं सूर्य की किरणों की धूप, इसी प्रकार स्निग्ध-चिकने, कोमल, ठंडेगर्म और हलके हेमन्त आदि ऋतुओं के सुखकर स्पर्श तथा अंगों को सुख और मन को शान्ति-स्वस्थता देने वाले जो स्पर्श हैं, उनमें तथा स्पर्शनेन्द्रिय को अच्छे लगने वाले सुखद स्पर्शों में निष्परिग्रही श्रमण को न तो' आसक्ति करनी चाहिए न राग करना चाहिए, न गृद्धि करनी चाहिए, न मोह करना चाहिए, न उनके लिए अपनी आत्मा का पतन करना चाहिए, यानी अपने आपको न्योछावर या कुर्बान न करना चाहिए, न ही लोभ करना चाहिए, न आत्मा में उसी बात की बार बार रट लगाना चाहिए, न प्रसन्नता व्यक्त करनी चाहिए, न हँसना चाहिए और न ही उनके बारे में स्मरण और मनन करना चाहिए । फिर इसका दूसरा पहलू यह है स्पनेन्द्रिय द्वारा अमनोज्ञ एवं पापजन्य अशुभ दुःखद स्पर्शों को पा कर रोष-द्वेष आदि नहीं करना चाहिए । अमनोज्ञ स्पर्श कौन-कौन से हैं ? इसके उत्तर में कहते हैं- अनेक प्रकार के रस्सी आदि के बन्धन, लाठी आदि से वध, थप्पड़ आदि से मारपीट, तपी हुई लोहे की सलाइयों से दाग देना, बूते से बाहर बोझ लाद देना, शरीर के अंगों को मरोड़ देना, नखों में सूइयां घुसेड़ देना, शरीर में सूइयां चुभो कर छेद डालना, लाख का गर्मागर्म रस चमड़ी पर डाल कर चमड़ी उधेड़