Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 867
________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र गंठिमवेढिमपूरिमसंघातिमाणि य मल्लाई बहुविहाणि य अहियं नयण मणसुहकराई, वणसंडे पव्वते य गामागर-नगराणि य खुद्द - क्खरिणि वावी - दीहिय-गुरुं जालिय- सरसरपंतिय सागरबिलपंतिय-खादिय-नदी-सर-तलाग - वप्पिणोफुल्लुप्पलप उमपरिमंडियाभिरामे, अगसउणगण- मिहुणविचरिए, वरमंडव - विविहभवण-तोरण- चेतिय देवकुल- सभ प्पवा-वसह- सुकयसयणासण-सीयरह-सयड-जाण-जुग्ग-संदण - नरनारिगरणे य, सोमपडिरूवदरिसणिज्जे, अलंकितविभूसिते, पुव्वकयतवप्पभावसोहग्ग-संपत्ते, नड - नत्तग- जल्ल- मल्ल- मुट्ठिय- बेलंबग कहग-पवग-लासग आइक्खगलंख-मंख - तू इल्ल-तु' बवीणिय-तालाय रपकरणाणि य बहूणि सुकरणारिण, अन्नेसु य एवमादिएसु रूवेसु मणुन्नभद्दएसु न तेसु समरणेण सज्जियव्वं, न रजियव्वं जाव न सइ च मइ' च तत्थ कुज्जा । पुणरवि चक्खिदिएण पासिय रुवाई अमणुन्नपाव काई, कि ते ? गंडि-कोढिक कुणि उदरि कच्छुल्ल पइल्ल कुज्जपंगुल - वामण- अंधिल्लग - एगचक्खु विणिहय सप्पि सल्ला वाहिरोगपीलियं, विगयाणि य मयककलेवराणि, सकिमिणकुहियं च दव्वरासि, अन्नेसु य एवमादिएसु अमणुन्नपावकेसु न तेसु समणेण रूसियव्वं जाव न दुर्गा छावत्तियावि लब्भा उप्पाते, एवं चक्खिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा जाव चरेज्ज धम्मं ।। २ । - ८२२ - - - ततियं घाणिदिएण अग्घाइय गंधाति मणुन्नभद्दगाई, ते ? जलय-थलय सरस- पुप्फ-फल- पाण- भोयण कुटु-तगर-पत्त-चोयदमणक-मरुय-एलारस-पक्कमंसि गोसीस सरसचंदण - कप्पूर- लवंगअगर कुकुम कक्कोल - उसीर -सेयचंदण - सुगन्ध-सारंग - जुत्तिवर धूव वासे उउयपिंडिम- णिहारिमगंधिएस अन्नेसु य एवंमादिसु गंधेसु मणुन्नभद्दएसु न तेसु समरणेण सज्जियव्वं जाव न सति च मई

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