Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 869
________________ ८२४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र काले अंगार - पतावणा य आयवनिद्धमउय सीय उसिणलहुया य जे उउहफासा अंगसुहनिव्वुइकरा ते, अन्नेसु य एवमादिसु फासेसु मणुन्नभद्दसु न तेसु समणेण सज्जियब्वं, न रज्जि - यव्वं, न गिज्झियव्वं, न मुज्झियव्वं, न विणिग्घायं आवज्जियव्वं, न लुभियव्वं, न अज्झोववज्जियव्वं, न तूसियव्वं, न हसियव्वं, न सति च मति च तत्थ कुज्जा । पुणरवि फासि दिएण फासिय फासाति अमणुन्नपावकाई, कि ते ? अणेगवध-बंध- तालणं कण-अतिभारा रोवणअंगभंजण - सूती नखप्पवेस - गायपच्छणण- लक्खारस-खारतेल्लकलकलंत तउअ-सीसक-काललोहसिंचण-हडि-बंधण-रज्जुनिगल-संकलहत्थं डुय-कु भिपाकदहण-सीहपुच्छण- उब्बंधण सूलभेय-गय-चलण मलण-करचरणकन्ननासोट्टसीसछेयण - जिन्भच्छेयण - वसणनयणहि यदंतभंजण-जोत्तलयकसप्पहार पादपहि-जाणुपत्थरनिवाय पीलण - कविकन्छु- अगणि-विच्छुयडक्क वायातवदंसमसकनिवाते दुट्ठणिसज्ज - दुन्नि सीहिया - दुब्भि- कक्खड गुरुसीय उसिणलुक्खेसु बहुविहेसु अन्न सु य एवमाइएस फासेसु अमणुन्नपावकेसु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियव्वं न निदियव्वं न गरहियव्वं न खिसियव्वं, न छिंदियव्वं, न भिदियव्वं, न वहेयव्वं, न दुगु छावत्तिया य लब्भा उप्पाएउ एवं फासिंदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पां मणुन्नाम णुन्न सुब्भिदुब्भिराग-दोस पणिहियप्पा साहू मणवयणका गुत्ते संबुडेणं पणिहितिदिए चरेज्ज धम्मं ॥ ५ ॥ , , एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहियं इमेहि पंचहि वि कारणेहि, मणवयकायपरिरक्खिएहि निच्चं आमरणंतं च एस जोगो नेयव्बो धितिमया मतिमया अणासवो, अकलुसो, अच्छिद्दो, अपरिस्सावी, असंकिलिट्ठो, सुद्धो, सव्व

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