Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 879
________________ ८३४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र नफरत आदि नहीं करना चाहिए। इस प्रकार की घ्राणेन्द्रियभावना से भावित अन्तरात्मा साधु मन के अनुकूल या प्रतिकूल शुभ या अशुभ गंध के मिलने पर राग और द्वष को तुरन्त रोक लेता है, अपने मन, वचन और शरीर को उनके जाल में फंसने बचाता है । इस प्रकार संवरयुक्त साधु (पणिहितिदिए) 'अपनी इन्द्रियों को सुस्थित करके (धम्मं चरेज्ज) धर्म का शुद्ध आचरण करता है । (चउत्थं) चौथी भावनावस्तु इस प्रकार है- (जिभिदिएण) रसनेन्द्रिय के द्वारा (मणुन्नभद्दकाइ) मनोहर एवं जिह्वा को प्रिय (रसाणि उ) रसों को (साइय) स्वाद ले कर-चख कर उनमें आसक्ति आदि नहीं करना चाहिये । (कि ते ?) वे रस कौन-कौन से हैं ? (उग्गाहिम-विविहपाण-भोयण-गुलकय-खंडकय-तेल्लघयकय-भक्खेसु) रसपूर्ण पक्वान्न, विविध पेय पदार्थ, भोजन तथा गुड़, शक्कर, तेल और घी से बनाए . हुए भोज्य पदार्थ (य) तथा (बहुविहेसु) अनेक प्रकार के (लवणरस-संजुत्तेसु) लवणरसों-मिर्चमसालों से संस्कारित (महुमंस-बहुप्पगार-मज्जिय-निट्ठाणग-दालियंब-सेहंबदुद्ध-दहि-सरय-मज्ज-वरवारुणी-सीहु-काविसायण-सायट्ठारस-बहुप्पगारेसु) मधु, मांस, अनेक प्रकार की मज्जिका, बहुत मूल्य से बनाया हुआ भोजन द्रव्य, खटाई, मिर्च, जीरे आदि से छोंकी हुई स्वादिष्ट दाल, सेंधानमक, खटाई आदि डाल कर बनाया अचार-अथा गा, दूध, दही, गुड़ तथा धातकीपुष्प आदि से बना हुआ सरक नामक पेयपदार्थ, जौ आदि के आटे से बना हुआ मद्य, गुड़ तथा महुए आदि से बनी हुई बारुणी मदिरा, सीधु और कापिशायन नामक मद्यविशेष, तथा १८ प्रकार के साग तथा अनेक प्रकार के (मणुन्नवन्नगंधरस-फास बहुदसंभितेसु तेसु भोयणेसु) मनोज्ञ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से निष्पन्न एवं बहुत से द्रव्यों से उपस्कृत उन-उन भोज्य पदार्थों में (य) और (एवमादिएसु अन्नसु मणुन्नभद्दएस रसेसु) इस प्रकार के मनोज्ञ और रसनेन्द्रिय प्रिय रसों— स्वादिष्ट पदार्थों में (समणेण) अपरिग्रही श्रमण को (न सज्जियब्वं) आसक्त नहीं होना चाहिए, (जाव) यावत् उनमें राग, मोह, लोभ, गृद्धि, लोलुपता एवं उनपर फिदा होकर अपने को न्योछावर न करना चाहिए; न प्रसन्नता प्रगट करनी चाहिए। (न सइंच मईच तत्थ कुज्जा) और न उनकी याद करनी चाहिए, न उनमें बुद्धि लगानी चाहिए। (पुणरवि) फिर दूसरी तरह से भी (जिभिदिएण) जिह्वेन्द्रिय के द्वारा (अमणुन्नपावगाई) अमनोज्ञ एवं पापजनित अशुभ (रसाई) रसों को (सायिय) चख कर रोष आदि नहीं करना चाहिए । (किं ते ?) वे विपरीत रस कौन-कौन से हैं ?

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