________________
८०४
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
अपरिग्रही को पहिचान ____ पूर्व सूत्रपाठ में बाह्य परिग्रह की दृष्टि से कहाँ परिग्रह है, कहाँ अपरिग्रह है ? कौन सी वस्तु किस रूप में ग्राह्य है, कौन-सी वस्तु सर्वथा अग्राह्य है या अमुक रूप में अग्राह्य है ? इसका सुन्दर विश्लेषण किया है । अब उस अपरिग्रही साधु को किन-किन लक्षणों से पहिचाना जा सकता है, इस पर शास्त्रकार सूत्रपाठ द्वारा निरूपण करते हैं
मूलपाठ एवं से संजते, विमुत्ते, निस्संगे, निप्परिग्गहरुई, निम्ममे, निन्नेहबंधणे, सव्वपावविरते, वासीचंदणसमाणकप्पे, समतिणमणिमुत्तालेठ्ठकंचणे, समे य माणावमाणणाए, समियरते, समितरागदोसे, समिए समितीसु, सम्मदिट्ठी, समे य जे सव्वपाणभूतेसु, से हु समणे, सुयधारए, उज्जुते, संजते, सुसाहू, सरणं सम्वभूयाणं, सव्वजगवच्छले सच्चभासके य संसारंतट्टिते, य संसारसमुच्छिन्ने, सततं मरणाण पारए (ते), पारगे य सव्वेसिं संसयारणं, पवयणमायाहिं अट्टहिं अट्टकम्म-गंठोविमायके, अट्ठमयमहणे, ससमयकुसले य भवति सुहदुक्खनिव्विसेसे, अभितरबाहिरंमि सया तवोवहाणंमि य सुठुज्जुत्ते, खते, दंते य, यिनिरते, ईरियास मिते, भासासमिते, एसणासमिते, आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिते, उच्चारपासवण-खेलसिंघाणजल्लपरिट्ठावणियासमिते, मणगुत्ते, वयगुत्ते, कायगुत्ते, गुत्तिदिए, गुत्तबंभयारी, चाई, लज्जू, धन्ने, तवस्सी, खंतिखमे, जितिदिए, सोहिए, अणियाणे, अबहिल्लेसे, अममे, अकिंचणे, छिन्नगंथे, निरुवलेवे, सुविमलवरकसभायणं व मुक्कतोए, संखेविव निरंजणे, विगयरागदोसमोहे, कुम्मो इव इंदिएसु गुत्ते, जच्चकंचणगं व जायसवे, पोक्खरपत्तं व निरुवलेवे, चदो इव सोमभावयाए, सूरोव्व दित्ततेए, अचले उह मंदरे गिरिवरे, अक्खोभे सागरोव्व थिमिए,