Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 853
________________ ८०८ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (हियनिरते) स्वपरहित में निरत-संलग्न रहता है; (ईरियासमिते) द्रव्य और भाव रूप से ईर्या-गति करने में सम्यक्प्रवृत्तिरूपसमिति से युक्त है, (भासासमिते) भाषा में यतनावान् है, (एसणासमिते) आहार - पानी आदि की एषणा करने में गोचरी में यतनाशील है, (आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिते) भाजन, पात्र आदि उपकरणों को सम्यक् प्रकार से लेने-उठाने और रखने की समिति-सम्यक् प्रवृत्ति से युक्त है, (उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्ठावणियासमिते) मल, मूत्र, कफ, लोटनाक का मैल, पसीना आदि शरीर का मैल आदि मलों को जीव-जन्तु की बाधा से रहित सुस्थल में परिष्ठापन करने-डालने की समिति का आचरण करने वाला है। (मणगुत्त) मनोगुप्ति सहित है, (वयगुत्ते) वचनगुप्ति से युक्त है, (कायगुत्त) कायगुप्ति का पालक है, (गुत्तिदिए) इन्द्रियों को विषयों में भटकने से गुप्ति-रक्षा करने वाला है (गुत्तबंभयारी ब्रह्मचर्य की सुरक्षा करने वाला है; (चाई) समस्त परिग्रह का त्याग करने वाला है, (लज्जू) अतिशय लज्जावान है-पापों से शर्माने वाला है, अथवा रज्जू-रस्सी के समान सरल है। (धन्ने) धन्य है, (तवस्सी) तपस्या करने वाला है, (खंतिखमे) कष्ट सहिष्णुता-तितिक्षा में क्षम-समर्थ है, (जितिदिए) जितेन्द्रिय है, (सोहिए) गुणों से सुशोभित है, अथवा आत्मशोधक है, या सर्वप्राणियों का सुहृद् मित्र है, (अणियाणे) निदान-आगामी भोगों को वांछा से रहित है। (अबहिल्लेसे) जिसको लेश्याएं, अन्तःकरण की विचार-तरंगें संयम से बाहर नहीं जाती, (अममे) जो 'मैं'. और 'मेरा' के अभिमानसूचक शब्दों से रहित है; (अकिंचणे) जिसके अपने स्वामित्व का कुछ भी नहीं है, (छिन्नगंथे) बाह्य और आभ्यन्तर गांठें जिसने तोड़ दी हैं, (निरुवलेवे) जो कर्म के या आसक्ति के लेप से रहित है, (सुविमलवरकसभायणं व मुक्कतोए) अतिनिर्मल उत्तम कांसे का बर्तन जैसे पानी के सम्पर्क से मुक्त रहता है, वैसे ही आसक्तिपूर्ण सम्बन्ध से मुक्त है (संखेविव निरंजणे) शंख के समान रागादि के अंजन-कालिमा से रहित है, (विगयरागदोसमोहे) जो राग, द्वेष और मोह से रहित है, (कुम्मो इव इदिएसु गुत्ते) कछुए की तरह जो इन्द्रियों को संगोपन करके रखता है। (जच्चकंचणगं व जायसवे) उत्तम शुद्ध सोना जैसे छविमान होता है, वैसे ही साधु भी आत्मा के शुद्ध स्वरूप की छवि प्राप्त कर लेता है, (पोक्खरपत्त व निरुवलेवे) कमल के पत्ते की तरह निर्लेप है, (सोमभावयाए) अपने सौम्य स्वभाव के कारण (चंदो इव) चन्द्रमा की तरह है (सूरोव्व दित्ततेए) सूर्य की तरह संयम के तेज से देदीप्यमान है (अचले जह मंदरे गिरिवरे) पर्वतों में प्रधान मेरुपर्वत की तरह सिद्धान्त पर जो अटलहै, (अक्खोभे सागरोव्व थिमिए) समुद्र के समान क्षोभरहित एवं स्थिर है, (पुढवी व

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