Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 826
________________ दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवरद्वार ७८१ कीयकडपाहुडं च दाणढ-पुन्नपगडं, समणवणीमगट्टयाए वा कयं, पच्छाकम्म, पुरेकम्मं, नितिकम्म, मक्खियं, अतिरित्तं, मोहरं चेव सयग्गहमाहडं, मट्टि उवलित्त, अच्छेज्जं चेव अणिसटुंजं तं तिहोसु जन्नेसु ऊसवेसु य अंतो व बहिं व होज्ज समणट्ठयाए ठवियं, हिंसासावज्जसंपउत्तं न कप्पती तं पि य परिघेत्तु।। ___ अह केरिसयं पुणाई कप्पइ ? ज तं एकारसपिंडवायसुद्ध, किणण-हणण-पयण कयकारियाणुमोयण-णवकोडीहिं सुपरिसुद्ध, दसहि य दोसेहिं विप्पमुक्कं, उग्गम-उप्पायणेसणाए सुद्ध, ववगयचुय-चविय चत्तदेहं च फासुयं ववगयसंजोगमणिगालं विगयधूम छट्ठाणनिमित्तं छक्कायपरिरक्खणट्ठा हणि हणि फासुकेण भिक्खेण वट्टियव्वं । जं पि य समणस्स सुविहियस्स उ रोगायंके बहप्पकारंमि समुप्पन्ने वाताहिकपित्तसिंभअइरित्तकुविय तह सन्निवातजाते . व उदयपत्ते उज्जलबलविउलकक्खडपगाढदुक्खे असुह-कडुयफरुसे, चंडफलविवागे महब्भए जोवियंतकरणे, सव्वसरीरपरितावणकरे न कप्पइ तारिसे वि तह अप्पणो परस्स वा ओसहभेसज्जं भत्तपाणं च तपि सन्निहिकयं, जंपि य समणस्स सुविहियस्स तु पडिग्गहधारिस्स भवति भायण-भंडोवहिउवगरणं पडिग्गहो पादबंधरण पादकेसरिया पादठवणं च पडलाइं तिन्नेव रयत्ताणं च गोच्छओ तिन्नेव य पच्छादा रयोहरण-चोलपट्टक-मुहणंतकमादीयं एयं पि य संजमस्स उवबूहणट्ठयाए वायायवदंसमसगसीयपरिरक्खणट्टयाए उवग णं रागदोसरहियं परिहरियव्वं संजएण णिच्च पडिलेहण-पप्फोडणपमज्जणाए अहो य राओ य अप्पमत्तेण होइ सततं निक्खिवियव्वं च गिण्हियव्वं च भायणभंडोवहिउवगरणं ।

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