Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 841
________________ ७६६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र उसकी तेजस्विता और सत्यवादिता खत्म हो जायगी। इन चीजों के ग्रहण करने के पीछे निषेध का तीसरा कारण यह है कि एक बार साधु को इन चीजों के रखने की आदत पड़ जायगी तो फिर उसे उन चीजों को बढ़ाने की धुन सवार होगी । इस प्रकार करने पर उसकी साधना मिट्टी में मिल जाएगी । इनके ग्रहण करने के निषेध के पीछे चौथा कारण यह है कि साधु की अपरिग्रहवृत्ति फिर खत्म हो जाएगी । उसमें वह दृढ़ता नहीं रहेगी, वह त्याग नहीं रहेगा, जिसे देखकर नरेन्द्र और देवेन्द्र तक भी उसके चरणों में झुकते हैं । स्वपरकल्याण की साधना भला इस झंझट में पड़ जाने पर कैसे हो सकेगी ? इसलिए शास्त्रकार ने उपर्युक्त सूत्रपाठ में स्पष्ट कर दिया है कि चीज चाहे थोड़ी हो या ज्यादा हो, कम कीमती हो, या बेशकीमती हो, प्रत्यक्ष में किसी की मालिकी की हो या न हो, जंगल में पड़ी हो, खेत में पड़ी हो, घर में रखी हो या किसी गांव, नगर, खान आदि में रखी हो, अथवा उस वस्तु का मालिक खुशी से साधु को भेंट दे रहा हो, अथवा प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करने की अनुमति दे रहा हो, किन्तु साधु को उसे हाथ से छूना तो दूर रहा, मन से भी ग्रहण करने का विचार नहीं करना चाहिए । क्योंकि साधु ने मोह का त्याग किया है । अतः मोह की वृद्धि करने वाले इन पदार्थों से उसे मन, वचन और काया से सदा दूर रहना चाहिए । अन्यथा उनके उपार्जन में. अनेक हिंसादि पापकर्म करने पड़ेंगे, उनकी रक्षा के लिए 'बाबाजी की लंगोटी' वाली कहावत की तरह सतत चिन्तित रहना पड़ेगा और उनके वियोग हो जाने पर हृदय में अत्यन्त दुःख होगा । मोही जीव ही इन पदार्थों के अर्जन, रक्षण और और वर्द्धन में सदा दत्तचित्त रहता है । साधु को ऐसे प्रपंच में पड़ने की क्या जरूरत है ? 4 फिर साधु तो स्वावलम्बन पर आरूढ़ हुआ है । अपनी तमाम क्रियाएँ प्रायः वह स्वयं अपने हाथ से ही कर लेता है । इसी कारण वह साधु जीवन अंगीकार करने से पूर्व ही दासी, नौकर-चाकर आदि सेवक, हाथी-घोड़, रथ, पालकी आदि सवारियों का त्याग कर चुका है । तब से ही वह आत्मावलम्बी हो कर विचरण कर रहा है । उसे अब इन परावलम्बी बनाने वाले साधनों की क्या जरूरत है ? क्योंकि परावलम्बी व्यक्ति सदा संक्लेश पाता है । निर्बल आत्मा ही सदा दूसरों का सहारा ढूंढा करता है । फिर परावलम्बी हो जाने पर राग द्वेषादि बन्धन बार-बार आते हैं । इसी कारण मोक्षपद का अभिलाषी साधु इन सब पराश्रयों का त्याग कर अपने सब काम प्रायः अपने हाथ से ही करके सुखी रहता है । शास्त्रकार ने इसीलिए दास दासी, नौकर चाकर तथा समस्त प्रकार के वाहनों के निषेध के उपरान्त छाता,

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