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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (E) तितिक्षा-कष्ट सहिष्णुता का होना, परिषह जीतना (१०) धर्म पालन में सरलता रखना, (११) शुचिता-सत्यता या पवित्रता का आचरण करना, (१२) सम्यग्दर्शन शुद्ध रखना, (१३) चित्त को स्वस्थ समाधि से युक्त रखना, (१४) ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपआचार और वीर्याचार, इन पांच आचारों का किसी के सामने अपनी प्रसिद्धि किये बिना मौनपूर्वक पालन करना । (१५) विनय का आचरण करना, किसी भी प्रकार का अभिमान न करना, (१६) धैर्यवान् बनना, धर्म के पालने में दैन्य न दिखाना । (१७) संवेगयुक्त बनना, अर्थात् मुमुक्षु बनकर सांसारिक बातों से डरना-दूर रहना। (१८) प्रणिधि-माया न करना । (१६) अपना आचरण उत्तभ और शुद्ध रखना, (२०) संवर का प्रयोग करना, आते हुए कर्मों-आश्रवों को रोकना । (२१) अपने अन्दर आते हुए दोषों को रोकना । (२२) समस्त कामों - विषयों से विरक्त रहना। (२३) मूल गुणों से सम्बन्धित प्रत्याख्यान त्याग) ग्रहण करना । (२४) उत्तर गुण सम्बन्धी प्रत्याख्यान-त्याग, नियम लेना । (२५) शरीर, उपधि साधन तथा कषाय आदि का द्रव्यभाव रूप से व्युत्सर्ग करना । (२६) प्रमाद का त्याग करना। (२७) प्रतिक्षण समाचारी के अनुसार कार्य करना—निकम्मा न रहना । (२८) ध्यान रूप संवर की साधना करना । (२६) मारणान्तिक वेदना होने पर भी क्षोभ न करना। (३०) विषयों की आसक्ति का स्वरूप ज्ञपरिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यान परिज्ञा से उसे छोड़ना, (३१) गृहीत प्रायश्चित्त का पालन करना अथवा प्रायश्चित्त लेना, (३२) जीवन की अन्तिम घड़ियों के समय संलेखना करके आराधक बनना।
तित्तिसा आसातणा-आय यानी ज्ञानादि का लाभ, उसकी शातना अर्थात् खंडना आशातना कहलाती है। इसके तेतीस भेद हैं - (१) गुरु या बड़ों के पास-पास शिष्य का सट कर चलना । (२) गुरु या बड़ों के आगे-आगे अविनयपूर्वक चलना। (३) गुरु या बड़ों के पीछे शिष्य का अविनयपूर्वक चलना। (४-५-६) शिष्य का गुरु या बड़े साधुओं के आगे, पीछे या बराबर में सटकर खड़े रहना। (७-८-६) गुरु या बड़े साधुओं के आगे, पीछे या बराबर में सटकर शिष्य का बैठना। (१०) बड़े साधुओं के साथ स्थंडिल भूमि (शौचक्रियार्थ) जाने पर शुचि करके उनसे पहले आ जाना। (११) बड़े साधुओं के साथ स्थंडिलभूमि (शौचक्रिया) जाने पर उनसे पहले वहां से लौट कर ईपिथिक प्रतिक्रमण कर लेना । (१२) मिलने या दर्शन के लिए आए हुये किसी व्यक्ति को बड़े साधुओं द्वारा बुलाने से पहले ही शिष्य द्वारा बुला लेना। (१३) रात को बड़े साधुजन आवाज दें कि कौन जागता है, कौन सो रहा है ?; तब जागते हुए भी उनके वचनों को सुने-अनसुने करके चुप रहना। (१४) भिक्षा में लाया हुआ आहार पहले दूसरे शिष्यादि को बता कर