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. श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
नारकों के अंगोपांग मुद्गर से भंग करता है, उसे उपरौद्र कहते हैं । काल-जो मृत्यु के समान भयंकर एवं काला असुर नारकों को कड़ाही, चूल्हे आदि में पकाता है, उसे काल कहते हैं। महाकाल—जो नारकों के तीक्ष्ण मांस के टुकड़े-टुकड़े करके स्वयं खाता है या उन्हें जबरन खिलाता है, उसे महाकाल कहते हैं । असिपत्र-जो असुर असि यानी तलवार के आकार के पत्तों वाला वन वैक्रियशक्ति से बनाकर वहाँ छाया के हेतु उन वृक्षों के नीचे आये नारकों पर वे खङ्ग के समान तेज धार वाले पत्ते गिरा कर उनके तिल-तिल टुकड़े कर डालते हैं, वे असिपत्र कहलाते हैं। धनुष्-जो देव धनुष् से छोड़े गए अर्धचन्द्र आदि बाणों से नारकीयों के नाक, कान आदि छिन्नभिन्न करता है, उसे धनुष् कहते हैं। कुम्भ-जो असुर नारकों को घड़े आदि में पकाता है, वह कुम्भ है। वालुक-जो असुर कदम्बपुष्पाकार वाली वज्र की तरह कठोर तपतपाती बालू (रेत) की विक्रिया करके उस पर चने की तरह नारकीय जीवों को भूनता है, उसे बालुक कहते हैं । वैतरणिक-जो परमाधार्मिक तपाने से पिघले हुए सीसा, तांबा आदि धातुओं के खौलते हुए गर्मागर्म रस से भरी हुई वैतरणी नदी विक्रिया से बनाता है और उसमें नारकीयों को जबरन डालता है, उसे वैतरणिक कहते हैं । खरस्वर --जो असुर वज्र के समान तीर के कांटे वाले सेमर के पेड़ पर नारकी को चढ़ाकर कर्कश आवाज करता हुआ उसे उलटा खींचता है, उसे खरस्वर कहते हैं । महाघोष-जो असुर डर के मारे कांपते हुए लाचार नारकों को पशुओं की तरह जबरन बाडों में भर कर जोर-जोर से चिल्लाता हुआ बंद कर देता है, वह महाघोष है । ये १५ परमाधाभिक असुर यहाँ ज्ञेय हैं और इस पाठ का यहाँ देने का उद्देश्य भी पूर्वोक्त अन्तरंग परिग्रह से बचने के लिए दिया गया है ।
गाहा सोलसया जिसमें गाथा नामक १६ वाँ अध्ययन है, ऐसे सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध में १६ अध्ययन हैं, जिन्हें जानना तथा उनमें से हेय, ज्ञेय, उपादेय का विवेक करना साधु के लिए जरूरी है। इन सोलह अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं-१ समय, २ वैतालीय, ३ उपसर्ग परिज्ञा, ४ स्त्रीपरिज्ञा, ५ निरय विभक्ति, ६ महावीरस्तुति, ७ कुशील परिभाषित, ८ वीर्य ६ धर्म, १० समाधि, ११ मार्ग, १२ समवसरण, १३ यथातथिक, १४ ग्रन्थ, १५ यमकीय और १६ गाथा।
असंजम-असंयम के १७ भेद हैं । वे इस प्रकार हैं -(१) पृथ्वी काय-असंयम, (२) अप्काय-असंयम, (३) तेजस्काय-असंयम, (४) वायुकाय-असंयम, (५) वनस्पति काय-असंयम, (६) द्वीन्द्रिय-असंयम (७) त्रीन्द्रिय-असंयम, (८) चतुरिन्द्रिय-असंयम, (९) पंचेन्द्रिय-असंयम, (१०) अजीव असंयम, (११) प्रेक्षा-असंयम, (१२) उपेक्षाअसंयम, (१३) अपहृत्य (प्रतिष्ठापन) असंयम, (१४) अप्रमार्जन-असंयम, (१५) मनअसंयम, (१६) वचन-असंयम और (१७) काय-असंयम ।