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दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवरद्वार
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देना मित्र द्वेष प्रत्यय क्रिया है । मायाप्रत्यय क्रिया-मन में कुछ और रखे, वचन से कुछ और बोले और शरीर से चेष्टा या आचरण कुछ और करे या दूसरों से छिपाकर क्रिया करे, वहाँ मायाप्रत्यय क्रिया होती है। लोभ प्रत्यय क्रिया-लोभ के वशीभूत होकर अनापसनाप सावद्य आरम्भ करे, परिग्रह में गाढ़ आसक्ति रखे, स्त्रियों व काम भोगों में अत्यन्त आसक्त रहे तथा अपने शरीर को बहुत जतन से रखते हुए दूसरे प्राणियों को काम लेने के लिए मारे, पीटे, भूखा रखे, वहां लोभ प्रत्यय क्रिया होती है। ईर्यापथिको क्रिया-ग्यारवें उपशान्त मोह गुण स्थान से लेकर तेरहवें सयोगी केवली गुण स्थान तक के साधुओं को समिति-गुप्तियुक्त गमनागमन करते समय केवल त्रियोग के निमित्त से जो मात्र एक सामयिकी साताबन्धलक्षणा क्रिया लगती है, उसे ईर्यापथिकी क्रिया कहते हैं।
ये १३ क्रियाएँ अन्तरंग परिग्रह से सम्बन्धित हैं। .
भयगामा- जीवों के चौदह समास-समूह हैं—(१) सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक, (२) सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, (३-४) बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक (५-६) द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक, (७-८) त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक; (६-१०) चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक, (११-१२) पंचेन्द्रिय असंज्ञी पर्याप्तक, अपर्याप्तक, (१३-१४) पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक, अपर्याप्तक । इस प्रकार कुल १४ जीवसमूह होते हैं। ये ज्ञेय हैं । इनके प्रति हिंसादि के भाव से अन्तरंग परिग्रह होता है, उससे बचना चाहिए।
परमाधम्मिया-नारकी जीवों को नरक की तीसरी पृथ्वी तक जाकर दुःख देने वाले असुर कुमारविशेष परमाधार्मिक कहलाते हैं। ये १५ प्रकार के हैं - (१) अम्ब, (२) अम्बरीष, (३) श्याम, (४) शबल, (५) रौद्र (६) उपरौद्र, (७) काल, (८) महाकाल, (६) असिपत्र, (१०) धनु (११) कुम्भ, (१२) बालुक, (१३) वैतरणिक, (१४) खरस्वर और (१५) महाघोष । इनके लक्षण क्रमश: इस प्रकार हैंअम्ब-जो परमाधार्मिक नारकियों को आकाश में ऊपर ले जाकर मारता है, उछालता है, गिराता है, या निःशंक छोड़ देता है, उसे अम्ब कहते हैं । अम्बरीषजो नारकों को मारकर कैंची से भाड़ में भूनने योग्य छोटे-छोटे टुकड़े करता है, उसे अम्बरीष कहते हैं। श्याम --जो काला कलूटा परमाधार्मिक रस्सी, हाथ आदि के प्रहार से नारकों को मारता है, उसे श्याम कहते हैं। शबल-जो नारकों की आंतें, चर्बी, कलेजा आदि को नोचता और निकालता है, उस चितकबरे रंग वाले असुर को शबल कहते हैं । रौद्र-जो रुद्रपरिणामी असुर भाले, त्रिशूल (शक्ति) आदि में नारकों को पिरोकर काटता है, उसे रौद्र कहते हैं। उपरौद्र-जो अत्यन्त रौद्रपरिणामी असुर