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देसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवरद्वार
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(१ से ६) पृथ्वीकायादि पांच स्थावर जीवों तथा द्वीन्द्रियादि चार त्रस-जीवों की हिंसा या आरम्भ करना पृथ्वीकायादि-असंयम है। अजीवकाय-असंयम वह है, जहाँ बहुमूल्य वस्त्र, पात्र, पुस्तकादि का ग्रहण किया जाता है। प्रेक्षा-असंयमधर्मस्थान, उपकरण आदि की प्रतिलेखन न करना या अविधिपूर्वक प्रतिलेखन करना प्रेक्षा-असंयम है। उपेक्षा-असंयम - संयमयुक्त कार्यों में प्रवृत्ति न करना, असंयम-युक्त कार्यों में प्रवृत्ति करना उपेक्षा असंयम है। अपहृत्य-असंयम (प्रतिष्ठापन असंयम)विधिपूर्वक मलमूत्रादि त्याग न करने से यह असंयम होता है। अप्रमार्जन असंयमवस्त्रपात्रादि का प्रमार्जन न करने से या अविधिपूर्वक प्रमार्जन से यह असंयम होता है। मन, वचन और काया को पापजनक कार्यों में प्रवृत्त करना क्रमशः मन असंयम, वचन-असंयम और काय-असंयम है। दूसरी तरह से भी असंयम के १७ भेद होते हैं-पांच आश्रवों से विरत न होना, पांच इन्द्रियों का निग्रह न करना, तथा चार कषायों का त्याग न करना, तीन दण्ड से अविरति—इस प्रकार १७ प्रकार के असंयम हैं, जिन्हें अन्तरंग परिग्रह जानकर उनसे बचना जरूरी है। - अबंभ-१८ प्रकार का अब्रह्मचर्य होता है। निम्नोक्त गाथा प्रस्तुत है इसके लिए
'ओरालियं च दिव्वं मणवयकायाण करणजोगेहिं ।
अणुमोयण-कारावण-करणेणट्ठारसाऽबंभं ति ॥'
औदारिक कामभोगों को मन, वचन, काया से भोगना, भुगवाना और भोगते हुए का अनुमोदन करना; ये ६ औदारिक काम भोग हैं । इसी प्रकार दिव्य कामभोगों को मन, वचन, काया से भोगना, भुगवाना और भोगते हुए का अनुमोदन करना, ये ६ दिव्य कामभोग हैं । औदारिक और दिव्य दोनों मिलाकर १८ भेद अब्रह्मचर्य के हुए । इन्हें अंतरंग परिग्रह समझ कर साधु को इनसे बचना चाहिए। ___णाय-ज्ञातासूत्र के १६ अध्ययन हैं । वे इस प्रकार हैं
१-उत्क्षिप्त-मेघकुमारवर्णन, २-संघाट-धन्यसार्थवाह और विजय चोर का दृष्टान्त, ३ अंड-मोर के अंडों का दृष्टान्त, ४ कूर्म-कछुए का दृष्टान्त, ५ शैलक--राजर्षिशैलक का दृष्टान्त, ६ तुम्ब - तुम्बे का दृष्टान्त, ७ रोहिणीरोहिणी आदि का वर्णन,' ८ मल्ली-भगवती मल्लिनाथ तीर्थकरी का दृष्टान्त, ६ माकंदी-जिनरक्षित और जिनपाल का दृष्टान्त, १० चन्द्रिका-चांदनी का वर्णन, ११ दावदव-दावदव वृक्ष का दृष्टान्त, १२ उदक १३ मंडूक - नन्दन मणिहार का दृष्टान्त, १४ तैतली-तैतलीपुत्र कुमार का दृष्टान्त, १५ नंदिफल,