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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
में जहाज के व्याकुल मनुष्यों के कलकल से युक्त, ( पायाल सहस्स वायवस वेगस लिलउद्धममाणदग-रयरयंधकारं) हजारों पातालकलशों की हवा के कारण तेजी से ऊपर उछलते हुए जलकणों की रज से अन्धकारमय, ( वरण-पउर-धवल- पुलंपुल- समुट्ठियट्टहासं) निरन्तर प्रचुरमात्रा में उठने वाला सफेद फेन' ही जिसका अट्टहास है, (मारुय- विच्छुभमाण- पाणिय- जलमालु- पीलहुलियं) जहाँ हवा के थपेड़ों से पानी क्षुब्ध हो रहा है, और जलकल्लोलसमूह भी अत्यन्त वेगवान हो रहे हैं । (अवि य) तथा ( समंतओ खुभिय- लुलिय-खोखुन्भमाण- पक्खलियच लिय-विपुलजलचक्कवाल-महानईवेगतुरिय आरमाण- गंभीर - विपुल - आवत्त - चवल-भममाण गुप्पमाणुच्चलंत - पच्चोणियत्तपाणिय- पधाविय - खर-फरुस-पचंड वाउलिय-सलिल फुट्ट त-वीइ - कलोलसंकुलं) चारों ओर की तूफानी हवाओं से क्षोभित, किनारे पर टकराते हुए जलसमूह से या मगरमच्छ आदि जलजन्तुओं से अत्यन्त चंचल बने हुए, - ( समुद्र के ) बीच में निकले हुए पर्वत आदि से टकराते व बहते हुए विपुल अथाह जलसमूह से युक्त तथा गंगा आदि महानदियों के वेग से शीघ्र लबालब भर जाने वाला है एवं गहरे अथाह भँवरों में चपलतापूर्वक भ्रमण करते, व्याकुल होते, उछलते और नीचे गिरते जलसमूह या जलजन्तुओं का जिसमें निवास है तथा वेगवान् एवं अतिकठोर प्रचण्ड क्षुब्ध पानी में से उठती हुई लहरों रूप किल्लोलों से जो व्याप्त है । ( महामगर - कच्छभो. हार-गाहतिमिसु सुमार-सावय-समाहय-समुद्धायमाणकपूरघोरपडरं) बड़े-बड़े मगर - मच्छों कछुओं, ओहार नामक जलजन्तुओं, और घड़ियालों (ग्राह), बड़ी मछलियों (तिमि ), सु सुमार और श्वापद नामक जलजन्तु विशेषों के परस्पर टकराने और एक दूसरे को निगलने के लिए दौड़ने से जो अतीव घोर बना हुआ है, (कायरजहियय कंपणं) कायर लोगों के हृदय को कंपाने वाला है, (मह-भयं) महाभयानक ( भयंकर) भय पैदा करने वाला, (प्रतिभयं ) प्रतिक्षण भयप्रद, ( उत्तासणकं) अत्यन्त उद्वेग (घबराहट) पैदा करने वाला (अणोरपार ) जिसके आरपार का कोई पता नहीं, ( आगासं चैव निरवलंबं ) और जो आकाश के समान आलंबनरहित है, ( उप्पाइयपवण-धणित-नोल्लिय - उवरुवरित रंगदरिय - अतिवेग चक्खुपहमुच्छरंतं) उत्पातजनित वायु से अत्यन्त प्रेरित — चलाई हुई एक के बाद दूसरी गर्व से इठलाती हुई लहरों के अतिवेग - तेजी से दृष्टिपथ – आँखों के रास्ते को ढक देने वाला ( कत्थइ) कहीं पर, ( गंभीर - विपुल-गज्जिय-गु जिय-निग्धाय - गरुय - निवतित-सुदीह-निहारि-दूर सुच्चंत गंभीरधुगधुगंतसह ) गंभीर और विपुल गर्जना से गूंजती हुई, आकाश में व्यन्तरकृत महाध्वनि के समान तथा उससे उत्पन्न व दूर सुनाई देने वाली प्रतिध्वनि के समान
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