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चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य आश्रव
प्रधानाभिलल्यमाना अतुलशब्दस्पर्शर सरूपगन्धान् चानुभूय तेऽप्युपनमन्ति मरणधर्ममवितृप्ताः कामानाम् ।
पदार्थान्वय- ( पुणे ) और ( तं च ) उस अब्रह्मचर्य को, (सअच्छरा) अप्सराओंदेवियों सहित, (मोहमोहितमती) मोह से मोहित बुद्धिवाले, (असुर-भुयग- गरुल - विज्जुजल - दीव - उदहि- दिसि - पवण - थणिया) असुरकुमार, नाग कुमार, सुपर्ण (गरुड़) कुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, पवनकुमार और स्तनित - मेघकुमार ये दस भवनवासी देव, ( अणवंनि - पणवंनि य - इसिवादिय-भूयवादिय-कंदिय महाकं दिय- कूहंड-पयंगदेवा) अणपन्निक, पणपनिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्मांड और पतंग ये आठ व्यन्तर जाति के उच्च माने जाने वाले यानी वन आदि स्थानों के अन्दर के भागों में रहने वाले देव, तथा ( पिसाय भू-क्ख- रक्खस- किन्नर - किंपुरिस-महोरग-गंधव्वा) पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व ये आठ व्यन्तरजाति के देव, जो पूर्वोक्त व्यन्तरों से नीचे माने जाते हैं, ( तिरिय- जोइस- विमाणवासि मणुयगणा) तिर्यग्लोक - मध्यलोक में विमानवासी ज्योतिषदेव तथा मनुष्यगण (य) और ( जलयरथलयर - खयरा) जलचर, स्थलचर और खेचर - पक्षी, (मोहपडिबद्धचित्ता) जिनका चित्त मोह में आसक्त है वे, (अवितण्हा) कामभोगों की प्राप्ति होने पर भी जिनकी तृष्णा मिंटी नहीं है, वे, (कामभोगतिसिया) अप्राप्त काम भोगों के प्यासे ( महईए व तह) भोगों की बड़ी बलवती - प्रबल तृष्णा - लालसा से ( समभिभूया) सताये हुए, (गढ़िया) विषयों में रचेपचे (य) और ( अतिमुच्छिया) अत्यन्त मूच्छित - आसक्त, (अबंभे ) अब्रह्मचर्य में कामवासना के कीचड़ में (उस्सण्णा) फंसे हुए ( तामसेण भावेण ) तामसभाव से - अज्ञानमय जढ़ता के परिणाम से ( अणुम्मुक्का) मुक्त नहीं हुए, (अन्नोऽन्नं) नरनारी के रूप में परस्पर अब्रह्म — मैथुन का (सेवमाणा ) सेवन करते हुए, (दंसणचरित्तमोहस्स) दर्शनमोहनीय एवं चारित्र - मोहनीय कर्म का ( पंजरमिव ) अपनी आत्मारूपी पक्षी को पींजरे में डालने के समान बंध, (ति) करते हैं ।
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( भुज्जो य) और पुन: ( असुर- सुर- तिरिय- मणुअ- भोग - रतिविहारसंपउत्ता) असुरों, सुरों, तिर्यंचों और मनुष्यों सम्बन्धी भोगों -- शब्दादिविषयों में राग-आसक्तिपूर्वक विहारों - विविध प्रकार की क्रीड़ाओं में प्रवृत्त — जुटे हुए (सुरनरवतिसक्कया) देवेन्द्रों और नरेन्द्रों द्वारा सम्मानित, (देवलोए) स्वर्गलोक में, (सुरवरुव्व) देवेन्द्र की