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आठवां अध्ययन : अचौर्य-संवर
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कम्म-विरते) दोषयुक्त आचरण के करने तथा कराने की पाप क्रियाओं से विरक्त ( दत्तमणुन्नाय ओग्गहरुई) दत्तानुज्ञात वस्तु को ग्रहण करना ही पसंद करती है ।
( ततीयं) तीसरी शय्यापरिकर्मवर्जना समितिभावना इस प्रकार है( पीढ फलग 'सेज्जासंथा रगट्टयाए) चौकी, पट्टे, शय्या-मकान और तृणादि के बिछौने - संस्तारक के निमित्त से ( रुक्खा ) वृक्ष ( न छिंदियब्वा) नहीं काटने चाहिए, (छेदणेण भेदणेण सेज्जा न कारयव्वा) वृक्षों का छेदन भेदन करके शय्या नहीं बनवानी चाहिए । (जस्सेव उवस्सए वसेज्ज) जिस गृहस्थ के उपाश्रय - धर्मस्थान में ठहरे निवास करे, (तत्थेव सेज्जं गवेसेज्जा) वहीं शय्या की गवेषणा करे - विधिपूर्वक याचना करे (च) और (विसमं) विषम - ऊबड़खाबड़ शयनीय स्थान या तख्त वगैरह को (समं न करेज्जा) सम-एक सरीखा न करे ( न निवायपवायउस्सुगत्तं ) हवा के न आने के लिए बंद द्वार की या वायु को आने के लिए खिड़की या वारी की उत्सुकता न करे (डंसमसगेसु) डांस और मच्छरों के होने पर ( न खुभियव्वं ) क्ष ुब्ध न हो, झुंझलाए नहीं, (अग्गी धूमो न कायव्वो) मच्छर आदि भगाने के लिए आग या धुंआ नहीं करना चाहिए ।
( एवं ) इस प्रकार ( संजमबहुले) पृज्वीकायिक आदि जीवों की यतनारूप संयम में प्रवीण, ( संवरबहुले) प्राणातिपात आदि आश्रवों के निरोधरूप संवर में प्रवर ( संवुड बहुलै) कषाय एव इन्द्रियों को संवृत्त करने वाला ( समाहिबहुले) चित्त को शान्ति समाधि से युक्त, ( धीरे ) परिषहों से विचलित न होने वाला धैर्यशाली साधक ( कारण फासतो) केवल मन में विचार करके ही नहीं, अपितु काया से भी तृतीय संवर का आचरण करता हुआ (सययं) निरन्तर (अज्झपज्झाणजुत्ते) आत्मावलम्बी - अध्यात्म ध्यान में तल्लीन हुआ ( समिए) सम्यक् प्रवृत्ति से युक्त साधु (एग धम्मं चरेज्ज) अकेला ही सूत्रचारित्रधर्म का आचरण करे । ( एवं ) इस प्रकार (सेज्जा समितिजोगेण ) शय्या के विषय में निर्दोष सम्यक् प्रवृत्तिरूप योग - चिन्तनयुक्त प्रयोग से (भावितो) संस्कारित ( अंतरप्पा ) साधु की अन्तरात्मा (निच्च) नित्य ( अहिकरण करण-कारावण- पावकम्म विरतो ) दोषयुक्त प्रपंच करने-कराने के पापकर्म से विरक्त होकर ( दत्तमणुन्नाय उग्गहरुई भवइ) दत्तानुज्ञात वस्तु को ग्रहण करना ही पसंद करती है । ( चउत्थं ) चौथो अनुज्ञातभक्तादि भोजन लक्षणा साधारण पिंडपात्रलाभसमिति भावना इस प्रकार है ( साहारण पिंडपात - लाभ सति) संघ के सर्वसाधारण साधुओं के लिए - सामूहिकरूप से – पिण्डपात भोजन प्राप्त होने पर या भोजन - पात्रादि वस्तु मिलने पर, ( , (संजण) साधु को (समियं )