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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र स्पर्श सहना अथवा इन सबके उपस्थित होने पर अभिग्रह आदि नियम, अनशन आदि तप, मूलगुण-उत्तर गुणरूप गूण और विनय आदि योगोंमनवचन-काया के प्रवृत्तिप्रयोगों से अन्तरात्मा को ब्रह्मचर्य के सुसंस्कारों से युक्त करले; जिससे ब्रह्मचर्य अत्यन्त स्थिर हो जाय।
ब्रह्मचर्य पर यह सैद्धान्तिक प्रवचन भगवान् महावीर ने अब्रह्मचर्य से विरति रूप ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए अच्छी तरह से कहा है, जो जन्मान्तर में सहायक होता है, भविष्य में कल्याण करने वाला है, निर्दोष है, न्यायसंगत है, कुटिलता से रहित है, सर्वोत्कृष्ट है और समस्त दुःखों एवं पापों का उपशमन करने वाला है।
व्याख्या शास्त्रकार ने इस ब्रह्मचर्य महाव्रत की सम्यक् आराधना करने वालों को सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य का माहात्म्य और स्वरूप समझाया है। ब्रह्मचर्यविघातक बातें, जो ब्रह्मचारी के लिए वर्जनीय हैं, उनका प्रतिपादन करके तत्पश्चात् ब्रह्मचर्यसाधक बातों का निर्देश किया है। अन्त में, ब्रह्मचर्यप्रवचन का महत्त्व बताया है । ब्रह्मचर्य की महिमा पर शास्त्रकार ने सारगर्भित शब्दों में निरूपण किया है। यह निरूपण काफी गंभीर अर्थ ध्वनित करता है। इसलिए यहाँ खास-खास स्थलों पर व्याख्या करना आवश्यक है।
ब्रह्मचर्य की महिमा ब्रह्मचर्य भारतीय महापुरुषों के मस्तिष्क की सर्वोत्तम उपज और संसार को सर्वोत्कृष्ट देन है। भारत का कोई भी धर्म ब्रह्मचर्य को छोड़ कर नहीं चलता। क्या वैदिक, क्या बौद्ध और क्या जैन, तीनों धर्मों की धाराओं में ब्रह्मचर्य अस्खलितरूप से प्रवाहित हो रहा है। साधु और गृहस्थ दोनों के जीवन में ब्रह्मचर्य आवश्यक है । भले ही गृहस्थ मर्यादित रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करता हो । ब्रह्मचर्य को केन्द्र में रख कर ही तप, जप या नियम आदि को सभी साधनाएँ चलती हैं। इसलिए अपने अनुभव के आधार पर शास्त्रकार ने ब्रह्मचर्य की गुणगाथाएँ गाई हैं ।
सवाल होता है, ब्रह्मचर्य की महिमा के गीत क्यों गाएं ? इससे साधक के जीवन को क्या लाभ है ? तथा ब्रह्मचर्य की गुणगाथा शास्त्रकार न गाते तो क्या हानि थी ? इसका समाधान यह है कि किसी भी वस्तु का महत्त्व और माहात्म्य जब तक कोई व्यक्ति नहीं समझेगा, जब तक वह उसमें रहे हुए गुणों को हृदयंगम नहीं कर लेगा या उससे होने वाले उत्तम लाभ को नहीं समझ लेगा, तब तक वह उसमें या उसके आचरण में प्रवृत्त नहीं होगा । और यदि कदाचित् श्रद्धावश या अबोधतावश