________________
नौवां अध्ययन : ब्रह्मचर्य-संवर
७४१ मूलार्थ-अब्रह्मचर्य से विरतिरूप ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए ये आगे कही जाने वाली पांच भावनाएं हैं। पहली असंसक्तवासवसति समिति भावना इस प्रकार है-शय्या, आसन, गृह, द्वार, घर का आंगन, खुला स्थान, खिड़की-झरोखा, घर का सामान रखने का स्थान, जहाँ से बाहर का दृश्य दिखाई देता है ऐसा बहुत ऊँचा स्थान, घर का पिछला भाग, शृङ्गार और स्नान करने का स्थान, वेश्याओं के स्थान, जहां बार-बार औरत बैठती या ठहरती हैं और मोह, कामराग व स्नेहरागआसक्ति बढ़ाने वाली अनेक प्रकार की कथाएं करती हैं, ऐसे स्त्री सम्पर्कसे चित्त में विकार उत्पन्न करने वाले सभी स्थान निश्चय ही ब्रह्मचारी साधु के लिए त्याज्य हैं । इसी प्रकार के अन्य स्थान भी वर्जनीय समझने चाहिए, जहां चित्तवृत्ति में कामविकलता होती हो, ब्रह्मचर्य का सर्वथा भंग होता हो या आर्तध्यान व रौद्रध्यान पैदा होता हो। पापभीरू तथा इन्द्रियों के प्रतिकूल विविक्त स्थान में निवास करने वाले साधु के लिए उचित है कि वह साधु के निवास करने के लिए अयोग्य उन-उन स्थानों का परित्याग करे । इस प्रकार असंसक्तवास वसतिसमिति के चिन्तनयुक्त प्रयोग से साधु की अन्तरात्मा ब्रह्मचर्य के संस्कारों से पुष्ट हो जाती है, उसका मन ब्रह्मचर्य में लीन हो जाता है और उसकी इन्द्रियाँ विषयों से निवृत्त हो जाती हैं । वह इन्द्रियविजेता साधु ब्रह्मचर्य की पूर्णतया सुरक्षा कर लेता है। __दूसरी स्त्रीकथाविरति समिति भावना इस प्रकार है-एकांत स्त्रियों कोही परिषद् में बैठ कर ज्ञानचारित्र भाव वद्ध क बातों से रहित वाणी की प्रपञ्चरचना से युक्त विचित्र एवं स्त्रियों की अभिमानजन्य अनादरपूर्ण चेष्टा तथा नेत्रादि विलास से युक्त कथा न करे । अथवा हास्यरस एवं शृगाररसप्रधान लौकिक कथा न करे। मोह उत्पन्न करने वाली नवविवाहित वरवधू को बुलाने की तथा विवाहशादी की कथाएं भी न करे। इसी प्रकार स्त्रियों के सौभाग्यदुर्भाग्य के सम्बन्ध में भविष्यवाणी न करे अथवा महिलाओं की सुरूपता-कुरूपता के सम्बन्ध में भी चर्चा न करे, तथा महिलाओं के आलिंगन आदि ६४ गुणों अथवा नृत्य, गीत, औचित्यादि ६४ महिला गुणों, या वात्स्यायन सूत्र आदि में प्रसिद्ध ६४ महिलागुणों की चर्चा भी नहीं करनी चाहिए । और न ही स्त्रियों से सम्बन्धित देश, जाति, कुल रूप, नाम, पोशाक और परिवार की कथाएं करनी चाहिए। इसी प्रकार की और भी शृंगार