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atai अध्ययन : ब्रह्मचर्य - संवर
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चारित्र की वृद्धि में या इनके ह्रास को रोकने में सहायक बनता है । किन्तु अगर उस ज्ञान का प्रयोग दूसरों के कल्याण का कारण न होकर अपने चारित्र का ही विनाश करने वाला हो जाय तो वहां साधु को जरा रुक कर आत्मचिन्तन और निरीक्षण-परीक्षण करना चाहिए । साधु का उपदेश सबके लिए है, किन्तु साधु काम या मोह से प्रेरित होकर अपना उपदेश एकान्त में — केवल स्त्रियों के बीच बैठ कर न करने लगे और वैराग्य के उपदेश के बदले कामवर्द्धक विचित्र बातें न सुनाने लगे या स्त्रियों के हाव भाव, विब्बोक ' या ' विलास से युक्त कहानियां ही न छेड़ बैठे अथवा स्त्रियों के मधुर हास्यरस या शृङ्गाररस के लौकिक किस्से न कहने लगे या मोहजनक बातें न बताने लगे अथवा नवविवाहित वर वधू के चरित्र एवं विवाह की चर्चा न छेड़ बैठे, या स्त्रियों के सौभाग्य- दुर्भाग्य की भविष्यवाणी न करे अथवा स्त्रियों के आलिंगन चुंबन आदि ६४ गुणों या उनके नृत्यगीत आदि ६४ गुणों का वर्णन न करने लगे, या फिर विभिन्न देश की, " जाति कीं व कुल" की स्त्रियों की चर्चा न छेड़े, या फिर स्त्रियों के रूप और वेशभूषा का वर्णन न करे या उनके नाम ले लेकर भी वर्णन न करे या स्त्रियों के परिवार वालों की राम कहानी न छेड़ बैठे । कहां तक कहें ? ये और इस प्रकार की दूसरी जो भी स्त्रियों के शृङ्गारादि से सम्बन्धित कामवर्द्धक एवं तप-संयम - ब्रह्मचर्य विघातक कथाएँ हों, उन्हें ब्रह्मचर्यं के आराधक साधु को न तो कहनी चाहिए, न ऐसी बातें सुननी चाहिए । अन्यथा ज्ञान के बदले अज्ञान, मोह और कुशील बढ़ेगा । ब्रह्मचर्य भ्रष्ट साधु का मन फिर अस्त व्यस्त ही रहेगा, वह धर्म रो सर्वथा पतित हो जायगा । यही इस भावना का प्रयोग है, जो साधक को ब्रह्मचर्यनिष्ठ एवं इन्द्रियविजेता बना देता है । निष्कर्ष यह है कि मोह
प्राप्तावभिमानगर्वसम्भूतः ।
स्त्रीणामनादरकृतो विब्बोको नाम विज्ञेयः ॥
१. इष्टानामर्थानां
अर्थ — इच्छानुकूल पदार्थों के मिल जाने पर अत्यन्त गर्व से उत्पन्न हुआ स्त्रियों का अनादरपूर्ण व्यवहार विब्बोक कहलाता है ।
चैव ।
२. स्थानासनगमनानां हस्त्रकर्मणां उत्पद्यते विशेषो य श्लिष्टः स तु विलासः स्यात् ॥
अर्थ - स्त्रियों के ठहरने, बैठने, चलने के तथा हाथ, भौंह और नेत्र के स्नेहयुक्त क्रियाविशेष को विलास कहते हैं ।
३. देश कथा - लाटी कोमल वचना व रतिनिपुणा होती है इत्यादि । ४. जातिकथा - ब्राह्मणियां विधवा होने पर मृतवत् हैं । ५. कुलकथा - पति मरने के बाद चौलुक्यपुत्रियाँ आग कूद पड़ती हैं । ६. नामकथा – सुन्दरी वास्तव में अत्यन्त सुन्दरी ही है।