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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
दुवार- अंगण - आगास- गवक्ख-साल-अभिलोयण-पच्छ्वत्थुक-पसाहणक ण्हाणिकावकासा) शय्या, आसन, घर, द्वार, आंगन, खुला स्थान - अनाच्छादित स्थान, खिड़कीझरोखा, सामग्री रखने का स्थान, बहुत ऊँचा स्थान, जहाँ से सब दिखाई देता है, घर का पिछला भाग, स्नान और श्रृंगार करने का स्थान (य) तथा ( वेसियाणं) वेश्याओं के ( अवकासा) स्थान (य) और ( जत्थ) जहाँ पर ( इत्थिकाओ ) स्त्रियाँ ( अभिक्खणं) बारबार ( अच्छंति) आकर बैठती हैं (य) एवं (मोहदोसरति रागवड्ढणीओ बहुविहाओ कहाओ ) मोह, द्वेष, कामराग एवं स्नेहराग आसक्ति को बढ़ाने वाली अनेक प्रकार की कथाएँ ( कर्हिति ) कहा करती हैं; ( तेवि इत्थिसंसत्तसंकिलिट्ठा) वे स्त्रियों के संसर्ग से चित्त में कामविकार पैदा करने वाले स्थान भी ( हु ) निश्चय ही ( वज्जणिज्जा) त्यागने योग्य हैं । (य) तथा (अन्नेवि ) और भी ( एवमादी ) इसी प्रकार के कामविकारवर्द्धक स्थान हों तो (ते) उन्हें भी (हु) अवश्य ( वज्जणिज्जा ) वर्जनीय समझें, अधिक क्या कहें ( जत्थ) जहाँ जहाँ (मणोविभमो वा ) चित्तवृत्ति में व्यग्रता या कामविह्वलता या 'ब्रह्मचर्य का पालन करू या नहीं ?' इस प्रकार की चित्त में भ्रान्ति, ( भंगो वा ) या ब्रह्मचर्य का सर्वथा भंग (भंसणा वा ) अथवा ब्रह्मचर्य का आंशिक भंग (अट्ट ) आर्तध्यान ( च, तथा ( रु झाणं) रौद्रध्यान (हुज्ज) पैदा हो, (अवज्जभीरू) पाप से डरने वाला (अंतपंतवासी )इन्द्रियों के प्रतिकूल, किन्तु साधुओं के अनुरूप विविक्त स्थान में निवास करने वाला साधु (तं तं ) उस उस ( अणायतणं ) साधुओं के निवास के अयोग्य स्थान का ( वज्जेज्ज) त्याग करे । ' ( एवं ) इस प्रकार ( असं सत्तवासवसही - समितिजोगेण ) स्त्रीसम्पर्क से रहित वसति - स्थान में निवास के विषय में सम्यक् प्रवृत्ति समितिप्रयोग से (अंतरप्पा ) साधु की अन्तरात्मा (भावितो) ब्रह्मचर्य के सुसंस्कारों से संस्कृत (भवति) हो जाती है; (आरतमर्णाविरयगामधम्मे) उसका मन हो जाता है, और इन्द्रियाँ आसक्तिपूर्वक विषय ग्रहण करने के स्वभाव से निवृत्त हो जाती हैं ( जितेंदिए ) इन्द्रिय- विजेता वह साधु (बंभचेरगुत्त) ब्रह्मचर्य की सुरक्षा कर लेता है । (बितियं) दूसरी स्त्रीकथाविरतिरूपसमिति भावना इस प्रकार है( नारीजणस्स ) केवल स्त्रियों की ही सभा के ( मज्झे) बीच में (विचित्ता) ज्ञान, चारित्रादि की वृद्धि को रोकने वाली कोरी वाणीविलासरूप विचित्र (विब्बोय - विलास संपत्ता ) स्त्रियों की अभिमानजन्य अनादरपूर्ण चेष्टाओं तथा भौंह, नेत्र आदि के विकाररूप विलास से संयुक्त ( कहा ) कथा (न) नहीं (कहेयव्वा ) कहनी
ब्रह्मचर्य में तल्लीन
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घर
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