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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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जं किचि इक्कडं वा गहियव्वं ।'
शास्त्रकार यहाँ स्पष्ट कर रहे हैं - 'आरामुज्जाण सक्करादी गेहइ सेज्जोवहिस्स अट्ठा न कप्पए उग्गहे यहाँ एक सवाल यह उठ सकता है कि जैन साधु कंदमूल, फल, पत्ते, फूल आदि पदार्थ सचित्त होने के कारण कभी ग्रहण नहीं करते, फिर उन्हें आज्ञा बिना लेने का निषेध क्यों किया गया ? इससे यह ध्वनित हो जाता है कि यदि उसका स्वामी आज्ञा दे दे, तो ये लिए जा सकते है ? इसका समाधान यह है कि वैसे तो जैन साधु तिनका, मिट्टी का ढेला आदि कोई भी चीज बिना आज्ञा के ग्रहण नहीं करता । दूसरे धर्म-सम्प्रदाय के गृहस्थ या साधु लोग जंगल आदि में पड़े हुए कन्दमूल आदि लेने में दोष नहीं समझते । मगर जैन साधु के लिए तो बिना अनुमति या बिना पूछे तिनका भी लेने का विधान नहीं है । इसलिए साधु को सावधान करने के लिए कहा है, किसी के स्वामित्व की चीज न होने पर भी कोई वस्तु साधु के लिए तब तक ग्राह्य नहीं होती, जब तक उसके स्वामी की अनुमति न मिले। सूखे अचित्त पदार्थों के लिए यही बात समझ लेनी चाहिए । यहां प्रसंग शय्या संस्तारक का है । इसलिए कन्दमूल फल की क्या जरूरत थी ? इसका समाधान यों है कि साधु जिस स्थान में ठहरा हो, वह ऊबड़खाबड़ हो तो उसे समतल बनाने के लिए अगर साधु को अचित्त कंदमूल आदि की जरूरत उन खड्डों या छिद्रों को बन्द करने के हेतु पड़ जाय तो अचित्त कंदमूल आदि अनुमति प्राप्त करके लिए जा सकते हैं ।
निष्कर्ष यह है कि साधु को मामूली से मामूली अल्पातिअल्प मूल्य की या बिना मूल्य की चीज भी उसके स्वामी के द्वारा दिये जाने पर या उसके द्वारा अनुमति दिये जाने पर ग्रहण करनी है । अन्यथा अदत्तादान — चोरी का दोष लगेगा और व्रतभंग होगा । इस प्रकार की भावना के चिन्तन के प्रकाश में चल कर साधु अपने अचौर्य महाव्रत की रक्षा कर सकता है ।
शय्यासंस्तारकादि परिकर्म वर्जना भावना का चिन्तन - साधु कई दफा ऐसा सोच लेता है कि "दूसरों के स्थान में ठहरने पर हमेशा उनकी इजाजत लेनी पड़ती है, अगर अपना खुद का स्थान बन जाय तो फिर किसी से किसी बात की इजाजत की झंझट में पड़ने की जरूरत ही नहीं रहेगी और न ही किसी वस्तु का अभाव खटकेगा । साधु होने पर भी दूसरों से इजाजत की यह परतंत्रता क्यों ? अतः स्वतन्त्रता इसी में है कि अपना निजी स्थान बनवा लिया जाय । इसके लिए पेड़ अमुक भक्त दे ही रहा है तो मैं क्यों न काट लू या दूसरों से कटवा - छिलवा लूं ।"
परन्तु यह निरी भ्रान्ति है कि इजाजत लेने में परतंत्रता है । वास्तव में देखा जाय तो इजाजत ले कर किसी स्थान पर ठहर जाने से अपनी स्वतन्त्रतापूर्वक चाहे जब तक ठहर सकता है, चाहे जब चला जा सकता है, मगर अपने निजी मकान में तो रोज ही रहना पड़ेगा । रहे चाहे न रहे, सफाई का
प्रबन्ध तो करना ही होगा ।