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पंचम अध्ययन : परिग्रह-आश्रव
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चन्द्रकान्त आदि मणि,सोने, चांदी,हीरे आदि बहुमूल्य पदार्थ अपनी तिजोरी या भंडार में रखे और उन्हें देख-देख कर आँखें ठंडी की; इत्र आदि बहुमूल्य सुगन्धित द्रव्यों से अपने शरीर और वस्त्रादि सुवासित किये ; सुन्दर स्त्रियों और आज्ञाकारी विनीत पुत्रों को देख-देख कर अपने मन और नेत्र में काल्पनिक शान्ति की अनुभूति की; अपने मनोनुकूल कुटुम्बीजन पाकर तथा आज्ञाकारी सेवक-सेविकाएं पा कर झूठा सन्तोष माना; शरीर के पोषण के लिए दूध, दही, घी आदि पदार्थों के साधक गाय-भैंस आदि पशु उपलब्ध किए ; सवारी के लिए हाथी, घोड़े, रथ, ऊँट आदि प्राप्त किये, गृहकार्य के लिए या परिवार का निर्वाह करने के लिए बढ़िया कपड़े, शय्या, बर्तन, मकान, भोजन, पेय-पदार्थ, धन और धान्य आदि का संग्रह किया, अभीष्ट भोगविलास के लिए अनेक साधन जुटाए, फिर भी आत्मा की तृप्ति न हुई,आसक्ति और तृष्णा बनी रही। ज्यों-ज्यों इन बाह्य परिग्रहों की मांग बढ़ती गई, त्यों-त्यों चिन्ता और व्याकुलता भी बढ़ती गई।
अतः पहले परिग्रह रूप विविध वस्तुओं के पाने की चाह, फिर प्राप्ति के लिए प्रयत्न, तदनन्तर प्राप्त वस्तु की रक्षा और फिर प्राप्त वस्तु का वियोग; ममत्वत्योग न होने की हालत में दूसरे के पास किसी वस्तु की प्रचुरता और अपने पास उसके न होने के कारण ईर्ष्या, द्वष, वरविरोध आदि; इन पांचों अवस्थाओं में परिग्रह को ले कर दुःख और अशान्ति, चिन्ता और व्याकुलता, निराशा और उद्विग्नता मन को घेरे रहती है।
परिग्रह को वृक्ष की उपमा--यही कारण है कि शास्त्रकार ने आगे चलकर इसी सूत्रपाठ में परिग्रह को वृक्ष की उपमा दी है। “अपरिमियमणंततण्हमणुगयं से ले कर पकंपियग्गसिहरो" तक का पाठ इस बात का साक्षी है। इस परिग्रह-रूपी वृक्ष की जड़ तृष्णां और महाभिलाषा है । क्योंकि प्राप्त हुए पदार्थों की रक्षारूप तृष्णा
और अप्राप्त वस्तु की आकांक्षा के आधार पर ही यह परिग्रह वृक्ष टिका हुआ है । यदि ये दोनों नष्ट हो जाएं तो परिग्रह वृक्ष गिर जाएगा। वास्तव में असीम एव अनन्त तृष्णा और लगातार नई-नई वस्तुओं को पाने की इच्छा और लालसा ही परिग्रहवृक्ष को मजबूत बनाने और टिकाए रखने वाली जड़ें है । ये जड़ें दिनोंदिन हरीभरी होती हैं । मनुष्य के अरमान और उसकी बड़ी-बड़ी इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं। वे पूरी हों, चाहे न हों, मनुष्य के मन में तृष्णा या लालसा के पैदा होते ही परिग्रह का पाप जन्म ले लेता है । इसलिए निरर्थक 'इच्छाओं या तृष्णाओं से बचना चाहिए।
इस परिग्रहवृक्ष का महास्कन्ध लोभ,कलह और क्रोध,मान, और माया रूप कषाय है । प्राप्त या अप्राप्त वस्तुओं के प्रति आसक्ति लोभ है,किसी इष्ट वस्तु का वियोग और अनिष्ट वस्तु का संयोग होने पर परस्पर कलह होता है । कलहके साथ क्रोध,अभिमान